Yada Yada Hi Dharmasya Sloka In Hindi: यह श्रीमद्भागवत गीता का लोकप्रिय श्लोक है। महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उस समय गीता का उपदेश दिया था जब वह अपने और पराये के भेद में उलझ गए थे। तब श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को यह ज्ञान प्रदान किया था।
इसलिए आज हम आपको गीता के सबसे ज्यादा सुने जाने वाले और सबसे ज्यादा चर्चित श्लोक के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। इसके साथ ही इस श्लोक की विस्तार से व्याख्या करेंगे। इस लेख में हम आपको भगवद गीता के मुख्य शिक्षाओं के बारे में पूरी जानकारी संक्षेप में बताएंगे, जो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को दी थी। तो आइये जानते है यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में, यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक संस्कृत में –
महाभारत के समय श्रीकृष्ण अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार करने में उनकी सहायता के लिए आगे आए थे। जब अर्जुन ने अपने साथियों, गुरुजनों, संबंधियों – रिश्तेदारों को युद्ध के लिए तैयार देखा तो मोह और सांसारिक मोह में आकर अर्जुन ने युद्ध लड़ने से इनकार कर दिया। तब योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मा, परमात्मा और इस सृष्टि को चलाने के लिए परम गोपनीय गीता का ज्ञान प्रदान किया। यह श्लोक गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 व 8 है, जो भागवत गीता के प्रमुख श्लोकों में से एक है।
यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक संस्कृत में (Yada Yada Hi Dharmasya Sloka Sanskrit Mein)
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में (Yada Yada Hi Dharmasya Sloka In Hindi)
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं, “जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, विनाश का कार्य होता है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं इस धरती (पृथ्वी) पर आता हूँ और इस धरती (पृथ्वी) पर अवतार लेता हूँ।”
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।”
इस श्लोक में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, “सज्जनों और मुनियों (साधुओं) की रक्षा के लिए और पृथ्वी से पाप का नाश करने के लिए और दुष्टों व पापियों का नाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में बार-बार अवतार लेता हूं। और सृष्टि के सभी निवासियों का कल्याण करता हूं।
यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक की विस्तृत व्याख्या हिंदी में (Yada Yada Hi Dharmasya In Hindi)
श्रीमद्भगवत गीता में जो भी श्लोक कहे गए हैं, वे सब श्री कृष्ण ने अपने मुख से कहे हैं। उसी श्रीमद्भगवत गीता के चौथे अध्याय के सातवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि –
संसार में जब-जब पाप और अधर्म बढ़ने लगता है। लोग अन्याय और अनैतिक कार्यों में लग जाते हैं, धर्म का नाश होने लगता है, तब ईश्वर और धर्म समाप्त होने लगते हैं। तब मैं इस सृष्टि से अधर्म को रोकने और धर्म का पुन: प्रचार (धर्म की फिर से वृद्धि ) करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेता हूं।
पृथ्वी पर सज्जनों के समान व्यवहार करने वाले उन सभी लोगों की रक्षा के लिए तथा दुष्टों के विनाश के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतरित होकर लोककल्याणकारी धर्म की स्थापना करता हूँ।
भगवद्गीता के आठवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि ऐसे समय में ईश्वर में आस्था रखने वाले अच्छे कर्म करने वाले पुण्य पुरुषों की मैं दुष्टों से रक्षा करता हूं और पृथ्वी पर उपलब्ध पापियों, अधर्मियों और दुष्टों का संहार करने के लिए हर कालखंड में, हर युग में अवतार लेता हूं।
जब-जब धर्म की हानि होती है, मैं उसकी रक्षा करता हूँ और लोगों के धर्म के प्रति अविश्वास को दूर करता हूँ। मैं अपने उपदेशों द्वारा लोगों की धर्म के प्रति आस्था जगाकर धर्म के प्रति लोगों के मन-मस्तिष्क में विश्वास स्थापित करता हूँ।
गीता की प्रमुख शिक्षाएं (Gita Ki Siksha)
मनुष्य को केवल कर्म करने का अधिकार है उसके फल का नहीं। इसलिए फल की चिंता छोड़कर कर्म पर ही ध्यान देना चाहिए।
आत्मा न जन्म लेती है न मरती है, आत्मा अमर है।
शरीर हर जन्म में बदलता रहता है। इसलिए आत्मा से प्रेम करे, अपने शरीर से नहीं।
जिसने धरती पर जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। मृत्यु के बाद फिर से जन्म लेना निश्चित है।
अच्छे और बुरे कर्मों का फल निश्चित है। लेकिन यह कब प्राप्त होगा, यह प्रकृति या ईश्वर पर निर्भर करता है।
मनुष्य का मन बड़ा चंचल है और यही अनेक प्रकार के पापों का कारण है। इसलिए मन को वश में करके भक्ति करनी चाहिए।
जो व्यक्ति सभी प्राणियों को अपना मानता है और जीवों के प्रति दया भाव रखता है वह सर्वश्रेष्ठ योगी माना जाता है।
मन को वश में करना मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है, जिसके मन पर वश नहीं है, उसके लिए मन ही उसका शत्रु है।
इन सांसारिक वस्तुओं से मोह व्यर्थ है। क्योंकि इस जन्म में यह आपका होगा और अगले जन्म में यह किसी और का होगा। इसलिए वस्तुओं में आसक्ति नहीं रखनी चाहिए।
जो मनुष्य अनन्य भाव और भक्ति से केवल मुझ (भगवान्) का ही चिन्तन करता है और मेरी पूजा करता है। मैं स्वयं उनके सभी कष्टों को वहन करता हूं।
सारांश
आज इस लेख के माध्यम से हमने आपको यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक का अर्थ हिंदी में, यदा यदा ही धर्मस्य श्लोक संस्कृत में, के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा, अगर आपको यह लेख यदा यदा ही धर्मस्य इन हिंदी (Yada Yada Hi Dharmasya In Hindi) अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।