चाणक्य कहते हैं कि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का आहार यानी भोजन दोगुना होता है। बुद्धि चौगुनी, साहस छह गुना और कामवासना आठ गुना होती है।
आचार्य ने स्त्री की कई विशेषताओं का वर्णन किया है। स्त्री के कई ऐसे पक्ष हैं, जिन पर सामान्य रूप से लोगों की दृष्टि नहीं जाती।
भोजन की आवश्यकता स्त्री को पुरुष की अपेक्षा इसलिए ज्यादा है, क्योंकि उसे पुरुष की तुलना में शारीरिक कार्य ज्यादा करना पड़ता है।
अगर इसे प्राचीन संदर्भ में भी देखा जाए, तो उस समय स्त्रियों को घर में कई ऐसे छोटे-मोटे काम करने होते थे, जिनमें ऊर्जा का व्यय होता था। आज के परिवेश में भी स्थिति लगभग वही है।
शारीरिक बनावट, उसमें होने वाले परिवर्तन और प्रजनन आदि ऐसे कारक हैं, जिसमें क्षय हुई ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए स्त्री को ज्यादा पौष्टिकता की आवश्यकता होती है।
भावना प्रधान होने के कारण स्त्री में साहस की उच्च मात्रा का होना स्वाभाविक है। पशु-पक्षियों की मादाओं में भी देखा गया है कि अपनी संतान की रक्षा के लिए वे अपने से कई गुना बलशाली के सामने लड़-मरने के लिए डट जाती हैं।
काम का आठ गुना होना, पढ़ने-सुनने में अटपटा लगता है लेकिन यह संकेत करता है कि हमने काम के रूप-स्वरूप को सही प्रकार से नहीं समझा है। काम पाप नहीं है।
स्त्री की कामेच्छा पुरुष से अलग होती है। वहां शरीर नहीं भावदशा महत्वपूर्ण है।
स्त्री में होने वाले परिवर्तन भी इस मांग को समक्ष लाते हैं-स्वाभाविक रूप से।
लेकिन स्त्री उसका परिष्कार कर देती है जैसे पृथ्वी मैले को खाद बनाकर जीवन देती है। इसे पूरी तरह से समझने के लिए कामशास्त्र का अध्ययन किया जाए।