चाणक्य ने अति से होने वाले दुर्गति को बताया है. वह कहते हैं माता सीता की अति सुंदरता और रावण के अति घमंड के कारण दोनों का जीवन संकट में आ गया।
वहीं अत्यंत दानी होने पर भी राजा बलि को परीक्षा हेतु छला गया था। इसलिए किसी भी चीज की अति नुकसानदेह होती है।
'अति' से होती है ये दुर्गति - आचार्य चाणक्य के अनुसार माता सीता की सुंदरता उनके सुखी जीवन पर भारी पड़ी।
देवी सीता के रूप का वर्णन सुनकर ही रावण अपने मोह को नहीं रोक पाया और उनका हरण कर लिया। उसे अपनी शक्तियों पर बेहद घमंड था, अहंकार के नशा ही रावण के विनाश का कारण बना।
इन उदाहरण से चाणक्य ने समझाया है कि किसी भी चीज की अति के परिणाम क्या होते हैं। फिर चाहे वह क्रोध हो, अहंकार, लालच, मोह, काम आदि बुरी आदतें हो।
आज के दौर में यही आदतें सुलझे इंसान की बुद्धि पर ताला डाल देती हैं। इनकी मद में रहने वाले सफलता के मुहाने तक आने के बाद भी उसका स्वाद नहीं चख पाते।
उदाहरण देते हुए चाणक्य कहते हैं कि अगर कोई व्यक्ति जरूरत से ज्यादा गुस्सा करता है तो उसके न केवल शत्रु बढ़ते हैं, बल्कि इसका प्रभाव उसके स्वास्थ्य पर भी पड़ता है।
वहीं छात्र जीवन में काम, लोभ, लालच की आदत बच्चे के भविष्य को अधर में लटका देती है।
हर वर्ग के इंसान को अपनी मर्यादाओं का कभी उल्लंघन नहीं करना चाहिए, क्योंकि सीमा लांघने वालों को नुकसान ही झेलना पड़ता है।