हिंसक और दुष्ट व्यक्ति के साथ ऐसा होना चाहिए आपका व्यवहार

कृते प्रतिकृतिं कुर्यात् हिंसेन प्रतिहिंसनम् । तत्र दोषो न पतति दुष्टे दौष्ट्यं समाचरेत् ।।

उपकारी के साथ सदैव उपकार का व्यवहार, हिंसक के साथ प्रतिहिंसा और दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार ही करना चाहिए। ऐसा करने में कोई दोष नहीं है।

चाणक्य नीति के श्लोक में बताया गया है कि व्यक्ति को सदैव सामने वाले जैसा व्यवहार ही रखना चाहिए।

अगर वह उपकारी है तो उसके साथ वैसा ही मधुर और उपकारी स्वभाव रखना चाहिए।

अगर वह हिंसक है तो अपनी रक्षा के लिए भी प्रतिहिंसा ही करनी चाहिए। 

और अगर वह दुष्ट है और आपका हित नहीं चाहता है तो उसके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए।

ऐसा करने में कोई दोष नहीं लगता है। बल्कि इससे आपको सुरक्षा प्राप्त होती है।