ऐसे बच्चे होते हैं कुल के लिए घातक, धूल में मिला देते हैं इज्जत

आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में परिवार को लेकर कई बातों का जिक्र किया है। 

इसमें कई ऐसे अध्याय हैं, जिनमें आचार्य चाणक्य ने बच्चों के गुणों के बारे में बताया है। 

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार सुगंधित फूलों से लदा हुआ एक ही वृक्ष पुरे जंगल को सुगंधित कर देता है, उसी प्रकार सुपुत्र से सारे वंश की शोभा बढ़ती है। 

एकेनापि सुवृक्षेण पुष्पितेन सुगन्धिना।  वासितं तद्वनं सर्वं सुपुत्रेण कुलं यथा।।

चाणक्य के अनुसार, बहुत से लोगों के कई संतानें होती हैं, लेकिन उनकी अधिकता के कारण परिवार का सम्मान नहीं बढ़ता। 

कुल का सम्मान बढ़ाने के लिए एक सद्गुणी पुत्र ही काफी होता है। 

धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों में से एक भी ऐसा नहीं निकला जिसे सम्मान से याद किया जाता हो। ऐसे सौ पुत्रों से क्या लाभ। 

आचार्य चाणक्य आगे कहते हैं कि जिस प्रकार एक सुखे पेड़ में आग लगने से सारा जंगल राख हो जाता है, उसी तरह एक मुर्ख और कुपुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है। 

 कुल की प्रतिष्ठा, आदर-सम्मान आदि सब धूल में मिल जाते हैं।  जैसे दुर्योधन की वजह से कौरवों का नाश हुआ।