इस तरह कमाए गए धन से आती है दरिद्रता

चाणक्य नीति के इस श्लोक में बताया गया है कि लक्ष्मी प्रवृत्ति में चंचल होती हैं। लेकिन इस पर भी व्यक्ति अगर चोरी, जुआ, अन्याय और धोखा देकर धन कमाता है तो वह धन भी शीघ्र नष्ट हो जाता है।

इसलिए व्यक्ति को कभी भी अन्याय या झूठ बोलकर धन अर्जित नहीं करना चाहिए। ऐसे धन को पाप की श्रेणी में रखा जाता है। यह धन कुछ दिनों तक आपके लोभ को कम तो कर सकता है लेकिन उससे अधिक आपके लिए परेशानियां खड़ी कर सकता है।

इसलिए इस प्रकार के धन को अर्जित करने से बचना चाहिए।

उन्होंने बताया है कि निर्धनता, रोग, दुख, बंधन और बुरी आदतें यह सभी मनुष्य के कर्मों का ही फल होती हैं। जो जैसा बीज बोता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है।

उन्होंने बताया है कि निर्धनता, रोग, दुख, बंधन और बुरी आदतें यह सभी मनुष्य के कर्मों का ही फल होती हैं। जो जैसा बीज बोता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। इसलिए व्यक्ति को सदैव अच्छे ही कर्म करने चाहिए।

आचार्य चाणक्य बता रहे हैं कि व्यक्ति को हमेशा दान-धर्म करना चाहिए और किसी व्यक्ति को दुख अथवा झूठ बोलने जैसी बुरी आदतों से बचना चाहिए। यह सभी कर्म व्यक्ति के भविष्य को निर्धारित करते हैं।

व्यक्ति को कभी भी धनहीन नहीं समझना चाहिए बल्कि उसे सबसे धनी ही समझना चाहिए। जो व्यक्ति विद्या के रत्न से हीन होता है वस्तुतः वही सभी प्रकार के सुख-सुविधाओं से हीन हो जाता है।

इसलिए व्यक्ति को सदैव विद्या अर्जित करने से दूर नहीं हटना चाहिए। बल्कि आयु के साथ-साथ विद्या का दायरा भी बढ़ाना चाहिए।

इससे वह व्यक्ति न केवल समाज में सम्मान प्राप्त करता है, बल्कि उसके पास धन की कमी भी नहीं होती है।