Top 10 Moral Stories In Hindi – नैतिक कहानियाँ बच्चों को जीवन का पाठ पढ़ाने का एक उत्कृष्ट तरीका हैं! ये कहानियाँ न सिर्फ बच्चों का मनोरंजन करती हैं बल्कि उन्हें भविष्य के लिए ज्ञान और मार्गदर्शन भी प्रदान करती हैं।
इस लेख में, हमने हिंदी में शीर्ष 10 नैतिक कहानियों की एक सूची तैयार की है जो आपके बच्चों को कुछ सिखने में मदद कर सकती हैं।
नैतिक कहानियाँ हमारी संस्कृति का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। ये कहानियाँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं, जो हमें बहुमूल्य सीख देती हैं। और जीवन में बेहतर निर्णय लेने में सहायता कर सकती हैं। तो आइये जानते है –
टॉप 10 मोरल स्टोरीज इन हिंदी – Top 10 Moral Stories In Hindi
चींटी और टिड्डे की कहानी (Chitti Aur Tidde Ki Kahani)
यह एक चींटी की कहानी है जो सर्दियों के लिए भोजन जमा करने के लिए पूरी गर्मी कड़ी मेहनत करती है। दूसरी ओर, टिड्डा अपना समय गाते और नाचते हुए व्यतीत करता है। जब सर्दी का समय आता है तो चींटी के पास जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन पहले से होता है, जबकि टिड्डे के पास कुछ नहीं होता है। कहानी का नैतिक यह है कि कड़ी मेहनत और योजना से कामयाबी मिल सकती है।
Moral Of The Story – कड़ी मेहनत और आगे की योजना बनाकर, हम अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं और अपनी भविष्य की सफलता को सुनिश्चित कर सकते हैं।
पत्थर और कलाकार की कहानी (Pathar Aur Kalakar Ki Kahani)
बात एक बार की है, जब एक कलाकार अपने औजारों को एक झोले में भरकर आगे बढ़ा है, तभी उसे एक बहुत ही सुंदर पत्थर दिखाई दिया। उसने सोचा – “क्यों न मैं एक मूर्ति बनाऊँ।”
वह झोले से औजार निकाल मूर्ति को तराशने लगता है, तभी पत्थर से आवाज आती है- अरे भाई! रहने दो, दर्द होता है। यह सुनकर कलाकार ने अपने औजार अपने झोले में रख लिए और आगे बढ़ने लगा।
अचानक कलाकार को फिर से एक पत्थर मिला। इस बार फिर कलाकार एक मूर्ति बनाने का विचार करने लगा और अपने औजार निकाल कर भगवान की मूर्ति को तराशने लगा और कुछ समय बाद एक सुंदर मूर्ति बनकर तैयार हो गयी।
फिर उस कलाकृति को कलाकार छोड़कर आगे बढ़ जाता है। चलते-चलते कलाकार एक गाँव में पहुँच जाता है। जहां भगवान का मंदिर बन रहा था।
कलाकार ने सरपंच से कहा – क्या यहां भगवान का मंदिर बन रहा है? सरपंच ने जवाब दिया – मंदिर बन गया है पर मूर्ति नहीं है। कलाकार ने सरपंच जी से कहा – सरपंच जी आप मूर्ति की चिंता न करें।
मैंने आगे के रास्ते में एक मूर्ति बनाई है। गांव के कुछ लोग मूर्ति और उस पत्थर को लेकर मंदिर में स्थापित कर देते हैं। मूर्ति के सामने लोग सिर झुकाकर मन्नतें मांगते है, जबकि लोग पत्थर के मुख पर नारियल फोड़ते है।
एक दिन मूर्ति और पत्थर आपस में बात कर रहे थे। जिस पत्थर पर लोग नारियल फोड़ते थे, वह मूर्ति से बोला- “ओ पत्थर! तुम्हारा क्या भाग्य है, आज तुम्हारी पूजा और आरती हो रही है, तो मूर्ति ने पत्थर से कहा – “अगर आज तुमने दर्द सहा होता, तो तुम मेरी जगह होते।
Moral Of The Story – सफलता के लिए कष्ट तो झेलने ही पड़ते है, बिना परिश्रम के सफलता नहीं मिलती |
चींटी और कबूतर की कहानी (Chitti Aur Kabutar Ki Kahani)
गर्मी के दिनों में एक चींटी पानी की तलाश में इधर-उधर घूम रही थी। कुछ देर इधर-उधर घूमने के बाद उसे एक नदी दिखाई दी और उसे देखकर वह बहुत खुश हुई।
वह पानी पीने के लिए एक पत्थर पर चढ़ी लेकिन फिसलकर नदी में गिर गई। जब वह पानी में डूबने लगी तो पास के एक पेड़ पर बैठे एक कबूतर ने उसकी मदद की।
चींटी को संकट में देखकर कबूतर ने तुरंत एक पत्ता चींटी के सामने पानी में गिरा दिया। चींटी पत्ते की ओर बढ़ी और उस पर चढ़ गई। फिर कबूतर ने पत्ते को पानी से निकालकर जमीन पर रख दिया।
इस तरह उस चींटी की जान बच गई और वह कबूतर की एहसान मंद रही। चींटी व कबूतर बहुत अच्छे दोस्त बन गए और खुशी-खुशी रहने लगे।
कुछ समय बाद एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने पेड़ पर बैठे सुंदर कबूतर को देखा और अपनी बंदूक कबूतर पर तान दी।
शिकारी को कबूतर पर निशाना लगाते देख चींटी ने तुरंत जाकर शिकारी के पैर में काट लिया। शिकारी को दर्द हुआ और बंदूक उसके हाथ से छूट गई। शिकारी की आवाज सुनकर कबूतर उड़ गया। इस तरह कबूतर की जान बच गई।
Moral Of The Story – अच्छे काम का नतीजा हमेशा अच्छा ही होता है।
हाथी और रस्सी की कहानी इन हिंदी (Hathi Aur Rassi Ki Kahani)
एक दिन एक आदमी हाथियों के डेरे के पास से गुजर रहा था। गौर से देखने पर उन्हें आश्चर्य हुआ कि इन हाथियों को न तो पिंजरे में रखा गया है और न ही किसी जंजीर से बांधा गया है।
हाथी भागने में असमर्थ थे क्योंकि उनके पैर पतली रस्सी के सहारे एक साधारण खंभे से बंधे हुए थे। आदमी के मन में सवाल उठा कि हाथी रस्सी को तोड़ने की कोशिश क्यों नहीं कर रहे । इस बारे में उन्होंने प्रशिक्षक से पूछा।
इस पर ट्रेनर ने जवाब दिया- हाथी जब बच्चे होते हैं तो हम उस समय इस तरीके का इस्तेमाल करते हैं लेकिन उस उम्र में रस्सी इतनी मजबूत होती है कि वो उसे तोड़ नहीं सकते।
जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं उन्हें विश्वास होने लगता है कि हम इस रस्सी को कभी नहीं तोड़ पाएंगे। यह विश्वास उन्हें हमेशा के लिए बंधन से मुक्त नहीं होने देता।
Moral Of The Story – खुद पर भरोसा रखना चाहिए और समस्या को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए |
मेंढक और चूहे की कहानी (Mendak Aur Chuhe Ki Kahani)
एक बार की बात है घने जंगल में एक छोटा सा तालाब था, जिसमें एक मेंढक रहता था। वह मेंढक एक दोस्त की तलाश में था। एक दिन उसी जलाशय के पास एक चूहा आ गया।
चूहे ने मेंढक को उदास देखकर पूछा, मित्र! क्या बात है, आप उदास क्यों है? चूहे से मेंढक ने कहा – मेरा कोई मित्र नहीं है, जिससे अपनी बात शेयर कर सकूँ, अपना सुख-दुख उसके साथ बाट सकूँ।
यह बात सुन चूहा उछल पड़ा और बोला, अरे! तुम मुझे आज से अपना मित्र ही समझो, मैं हर वक्त तुम्हारे साथ रहूंगा। चूहे की बात सुन मेंढक भी बहुत खुश हुआ।
दोस्ती होने के बाद दोनों घंटों एक-दूसरे से बातें करने लगे, एक-दूसरे के साथ समय बिताने लगे। कभी मेंढक जलाशय से निकलकर पेड़ के नीचे चूहे के बिल में चला जाता तो कभी दोनों जलाशय के बाहर बैठ खूब बातें भी किया करते।
समय के साथ दोनों के बीच दोस्ती गहरी होती गई। चूहा और मेंढक अक्सर एक दूसरे से अपने विचार साझा करते थे।
एक दिन मेंढक के मन में एक विचार आया कि मैं अक्सर चूहे के बिल में उससे बात करने जाता हूँ, पर चूहा मेरे जलाशय में कभी नहीं आता। यह सोचकर मेंढक ने चूहे को जलाशय में लाने की एक तरकीब खोज निकाली ।
चतुर मेंढक ने चूहे से कहा कि मित्र! हमारी दोस्ती बहुत गहरी हो गई है। अब हमें कुछ ऐसा करना चाहिए कि एक-दूसरे को याद करते ही हमें एहसास हो जाए।
चूहा मान गया और बोला, हां क्यों नहीं लेकिन हम ऐसा करेंगे क्या? दुष्ट मेंढक ने कहा, तेरी पूँछ और मेरे पैर से एक रस्सी से बाँध देनी चाहिए। जब भी हम एक दूसरे को याद आएगी तो इस रस्सी को खींच कर पता लगा लेंगे।
मेंढक की इस चाल के बारे में चूहे को पता नहीं था । इसलिए चूहा इसके लिए राजी हो गया। मेंढक ने फटाफट से अपना एक पैर और चूहे की पूँछ को एक रस्सी से बाँध दिया। इसके बाद मेंढक पानी में चला गया।
मेंढक खुश था क्योंकि उसकी योजना सफल हो गई थी। वहीं, पानी में चूहे की हालत खराब हो गई क्योंकि उसे तैरना नहीं आता था। अंत में कुछ देर छटपटाने के बाद चूहा मर गया।
एक चील आकाश में उड़ते हुए यह सब देख रही थी। जैसे ही उसने चूहे को पानी में देखा तो वह तुरंत उसे मुंह में दबा कर उड़ गयी। मेंढक का पैर भी चूहे की पूंछ के साथ बंधा हुआ था, इसलिए मेंढक के साथ चूहा भी बाज के चंगुल में आकर फस गया।
पहले तो मेंढक को समझ नहीं आया कि क्या हुआ। वह सोच में पड़ गया कि यह आकाश में कैसे उड़ रहा है? जैसे ही उसने ऊपर देखा, वह चील को देखकर डर गया। अब मेंढक चील से अपनी जान की भीख मांगने लगा, पर चूहे के साथ-साथ चील मेंढक को भी खा खाई।
Moral Of The Story – इस कहानी से शिक्षा मिलती है, जैसी करनी वैसी भरनी।
बिल्ली और चूहे की कहानी इन हिंदी (Billi Aur Chuhe Ki Kahani)
एक बिल्ली थी, जो की बहुत चालाक थी। उसकी चतुराई और फुर्ती देखकर चूहे भी सतर्क हो जाते थे। लेकिन अब बिल्ली चूहों को पकड़ नहीं पा रही थी।
एक समय ऐसा आया जब बिल्ली भूख के मारे हांफने लगी। एक चूहा भी उसके हाथ नहीं आ पा रहा था क्योंकि उसकी आहट सुनकर चूहे तेजी से भागकर अपने बिल में छिप जाता थे।
बिल्ली ने अपनी भूख मिटाने के लिए एक योजना बनाई। बिल्ली टेबल पर उल्टी लेट गयी। उसने ऐसा इसलिए किया ताकि सभी चूहों को लगे कि वह मर चुकी है।
सारे चूहे बिल्ली को अपने बिलों में से देख रहे थे। वे जानते थे कि बिल्ली नाटक कर रही है, इसलिए कोई भी चूहा बिल से बाहर नहीं निकला।
लेकिन बिल्ली ने हार नहीं मानी। वह काफी देर तक टेबल पर उल्टी लेती रही। अब चूहे सोचने लगे कि बिल्ली मर गई। वे जश्न मनाते हुए अपने बिल से बाहर आने लगे।
जैसे ही चूहे टेबल के पास पहुंचे। बिल्ली ने छलांग लगाई और दो चूहे पकड़ लिए। इस तरह बिल्ली ने अपना पेट भर लिया लेकिन इस घटना के बाद चूहे और भी सतर्क हो गए।
कुछ समय बाद बिल्ली फिर से भूख से तड़पने लगी, क्योंकि चूहे बिल्कुल भी लापरवाह नहीं होना चाहते थे।
इस बार बिल्ली एक बार फिर अपना पेट भरने की योजना बनाने लगी, लेकिन अब छोटी सी योजना काम नहीं आ रही थी। इस बार बिल्ली ने खुद को आटे से ढक लिया।
चूहे आटा खाने आए लेकिन एक बूढ़े चूहे ने उन्हें रोक दिया। जब उसने आटे को ध्यान से देखा तो उसे उसमें एक बिल्ली की आकृति दिखाई दे रही थी।
तभी बूढ़ा चूहा शोर करने लगा। उसने कहा, “सब लोग अपने बिलों में जाओ, यहाँ आटे में बिल्ली छिपी है।” उस बूढ़े चूहे की बात सुनकर सारे चूहे अपने बिल में वापस चले गए।
जब काफी देर तक एक भी चूहा बिल्ली के पास नहीं पहुंचा तो बिल्ली थक कर वहां से उठ खड़ी हुई। इस तरह बूढ़े चूहे ने अपने अनुभव से सभी चूहों की जान बचा ली।
Moral Of The Story – बुद्धि का इस्तेमाल किस भी मुसीबत और धोखे से बचा सकता है।
मोटा मुर्गा और बैल की कहानी (Mota Murga Aur Bel Ki Kahani)
एक किसान के पास दो बैल थे। एक का नाम श्याम और दूसरे का नाम घनश्याम था। वो दोनों बैल मिलकर किसान के लिए बहुत मेहनत करते थे। खेत जोतते थे, बैलगाड़ी खींचकर बाजार ले जाते थे। किसान भी उनकी अच्छी देखभाल करता था, उन्हें खिलाता था लेकिन अपने खेतों में उनसे बहुत काम भी करवाता था। दोनों बैल दिन भर काम करके थके हारे घर लौटते थे और खा-पीकर सो जाते थे।
एक दिन जब दोनों बैल खेत में काम करके वापस आते हैं तो उन्हें अपने घर में एक मुर्गा दिखाई देता है। किसान उसे चना, अनाज और अच्छी वस्तु खाने को देता था। वह दिन भर खाता, पीता और घूमता फिरता था। खाने के बाद वह काफी मोटा हो गया था।
यह सब देखकर श्याम बैल ने घनश्याम से कहा कि हम दिन भर खेतों में काम करते हैं, इतनी मेहनत करने के बाद भी मालिक हमें इतना अच्छा खाना नहीं खिलाते। जबकि मुर्गा कुछ करता भी नहीं और बढ़िया से अच्छा खाना खाता है।
इस बात पर दूसरा बैल बोला, ऐसा मत सोचो भाई। किसान हमें खाने के लिए अच्छी घास, भूसा और ठंडा पानी भी देताहैं। वह हमारे विश्राम के लिए सूखी घास भी बिछाता है और उसे साफ रखता है। वह हमारा भी ख्याल रखता है। हमें जो मिल रहा है उसमें खुश और संतुष्ट रहना चाहिए। लेकिन आप देखिए किसान इस मुर्गे को किसी कारण से खिलाकर मोटा बना रहा है।
एक दिन दोनों बैलों ने देखा कि किसान अपने साथी के साथ बहुत अच्छा खाना खा रहा है। लेकिन मोटा मुर्गा कहीं नजर नहीं आया। तब उन दोनों को पता चला कि किसान ने अपने साथी के खाने के लिए मोटे मुर्गे को काटा था।
Moral Of The Story – जो संसाधन हमारे पास उपलब्ध है, उन्ही में खुश व संतुष्ट रहना चाहिए।
कौआ और कोयल की कहानी (Kowa Aur Koyal Ki Kahani)
एक बार एक नगर के समीप एक घने जंगल में एक बरगद का पेड़ था, जिस पर कौआ व कोयल दोनों अपने-अपने घोंसलों में रहते थे। एक रात उस जंगल में तेज आंधी आयी और कुछ देर बाद बारिश होने लगी। देखते ही देखते जंगल में सब कुछ बर्बाद हो गया।
अगले दिन कौए और कोयल को खाने के लिए कुछ नहीं मिला। कोयल ने कौवे से कहा, “हम इस जंगल में कितने प्यार से रहते हैं, लेकिन अब हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है।
अपनी भूख मिटाने के लिए एक काम करे, क्यों न जब मैं एक अंडा दूं तो तुम उसे खाकर अपनी भूख मिटाओ और जब तुम एक अंडा दो तो मैं उसे खाकर अपनी भूख मिटा लूं?
कौआ कोयल की बात मान गया। संयोग से कौए ने पहले अंडा दिया और कोयल ने उसे खाकर अपनी भूख मिटाई। जब कोयल ने अंडा दिया तो कौए ने जैसे ही कोयल के अंडे को खाना शुरू किया, कोयल ने उसे रोक दिया।
कोयल बोली, “तेरी चोंच साफ नहीं है, पहले धोकर आ फिर अंडा खा।” कौआ तेजी से नदी की तरफ भागा। उसने नदी से कहा, “मुझे अपनी चोंच धोने के लिए पानी चाहिए।”
नदी ने कहा, “ठीक है! तुम पानी के लिए एक बर्तन ले आओ। कौवा जल्दी से कुम्हार के पास पहुँचा औरकुम्हार से कहा, “मुझे एक बर्तन दो। मैं बर्तन में पानी भरकर अपनी चोंच धोऊँगा, फिर कोयल का अंडा खाऊँगा।
कुम्हार ने कहा, “बर्तन बनाने के लिए मिट्टी लाकर दो।” यह सुनकर कौआ मिट्टी मांगने धरती के पास जा पंहुचा। उसने धरती से कहा, “मुझे मिट्टी चाहिए।
उससे कुम्हार से बर्तन बनवाऊँगा, उस बर्तन में जल भरकर चोंच साफ करूंगा, फिर भूख मिटाने के लिए कोयल का अण्डा खाऊंगा।
पृथ्वी ने कहा, “मैं मिट्टी दूंगी, परन्तु इसके लिए खुरपी लानी पड़ेगी, जिससे मिट्टी खोदी जा सके।” कौआ तेजी से दौड़ता हुआ लोहार के पास पहुंचा। उसने लोहार से कहा, “मुझे खुरपी चाहिए।
लोहार ने गरम खुरपी कौए को दे दी। जैसे ही कौवे ने उसे पकड़ा, उसकी चोंच जल गई और कौआ तड़प-तड़प कर मर गया। इस तरह कोयल ने चतुराई से अपने अंडे कौए से बचा लिए।
Moral Of The Story – दूसरों पर कभी भी आँख मुंद कर भरोसा नहीं करना चाहिए |
लालची चरवाहा (Lalchi Charwah Ki Kahani)
अपनी बकरियों को चराने के लिए एक दिन एक चरवाहा समीप के ही एक जंगल में ले गया। अचानक तेज बारिश होने लगी, वह अपनी बकरियों को लेकर पास की एक गुफा में पंहुचा।
जब चरवाहे ने देखा कि कुछ जंगली बकरियाँ पहले से ही वहाँ शरण लिए हुए हैं, तो वह बहुत खुश हुआ। उसने सोचा, ‘मैं इन बकरियों को अपने झुंड में शामिल कर लूँगा।’
यह सोचकर चरवाहा जंगली बकरियों की खूब देखभाल कर रहा था। उन्हें हरी पत्तियाँ और घास खिला रहा था, लेकिन अपनी बकरियों की ओर कोई ध्यान नहीं देत रहा था।
इसलिए वह दिन-ब-दिन कमजोर होती जा रही थी। कई दिनों के बाद बारिश बंद हुई और जैसे ही बारिश बंद हुई, जंगली बकरियां जंगल में भाग गईं।
चरवाहे ने सोचा, ‘चलो, कोई बात नहीं। वैसे भी हमारी बकरियाँ हैं। लेकिन उस समय उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, क्योकि सभी बकरियां भूख से मर चुकी थी।
चरवाहा बोला – “मेरे जैसा मूर्ख कोई और नहीं, जिसने जंगली बकरों के लालच में अपनी बकरियों से भी हाथ धो लिया ।” फिर पछतावे से हाथ मलते हुए अपने घर लौट आया।
Moral Of The Story – हमेशा संतोषी प्रवृत्ति ही अपनानी चाहिए।