Nirjala Ekadashi Ka Mahatva – हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व है। निर्जला एकादशी साल की सभी एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु जल्दी प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं। इस दिन दान करना बहुत शुभ माना जाता है। तो आइए जानते हैं निर्जला एकादशी का महत्व –
निर्जला एकादशी का महत्व (Nirjala Ekadashi Ka Mahatva Significance)
निर्जला यानी यह व्रत बिना पानी पिए और उपवास किए रखा जाता है। इसलिए यह व्रत कठिन तपस्या और साधना के समान ही महत्व रखता है। निर्जला एकादशी को भीमसेन एकादशी या पांडव एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि पांच पांडवों में से एक भीमसेन ने यह व्रत किया था और वैकुंठ गए थे। इसलिए इसका नाम भीमसेनी एकादशी भी है।
केवल निर्जला एकादशी का व्रत करने से अधिकमास की दो एकादशियों सहित वर्ष की 25 एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है। साल की अन्य एकादशियों के व्रत में आहार संयम जरूरी है। निर्जला एकादशी के दिन आहार के साथ-साथ जल ग्रहण भी संयमित रखना जरूरी है। इस व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता यानी निर्जल रहकर व्रत किया जाता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं।
निर्जला एकादशी व्रत सभी तीर्थ स्थानों में स्नान करने के बराबर है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत रखने और इस दिन बताई गई चीजों का दान करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस दिन दान करने से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है और जीवन के सभी दुख और कष्ट दूर हो जाते हैं। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को लंबी उम्र मिलती है। इस दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना भी शुभ माना जाता है।
इस दिन व्रत, पूजा और दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि का आनंद लेते हुए अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी की कथा (Nirjala Ekadashi Ki Katha Hindi Mein)
निर्जला एकदशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकदशी के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, पांडवों में सबसे शक्तिशाली भीमसेन स्वादिष्ट भोजन के बड़े प्रेमी थे। उनसे भूख बर्दाश्त नहीं होती थी, इसलिए वह साल में एक भी एकादशी का व्रत नहीं कर पाते थे।
पांडवों में भीम के अलावा सभी भाई और द्रौपदी वर्ष की सभी एकादशियों का व्रत श्रद्धापूर्वक करते थे। एक समय ऐसा आया जब भीम अपनी बेबसी और कमजोरी से परेशान हो गये। उन्हें लगा कि वह एकादशी का व्रत न करके भगवान विष्णु का अपमान कर रहा है। इस समस्या का समाधान खोजने के लिए वे महर्षि व्यास के पास पहुंचे। तब महर्षि व्यास ने उनसे कहा कि उन्हें वर्ष में एक बार निर्जला एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए।
महर्षि व्यास ने यह भी बताया कि निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल मिल जाता है। यही कारण है कि निर्जला एकादशी व्रत को भीमसेनी एकादशी व्रत के नाम से भी जाना जाता है।
निर्जला एकादशी पूजा विधि हिंदी में (Nirjala Ekadashi Puja Vidhi In Hindi)
निर्जला एकादशी सभी व्रतों में सर्वोत्तम मानी जाती है इसलिए इस व्रत को पूरे मनोयोग से करना चाहिए। व्रत करने से पहले भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए कि प्रभु आपकी कृपा मुझ पर बनी रहे और मेरे सारे पाप नष्ट हो जाएं।
निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करें और एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक अन्न और जल का त्याग करें। आप अपनी क्षमता के अनुसार भोजन, कपड़े, जूते आदि का दान कर सकते हैं। जल से भरा हुआ घड़ा भी कपड़े से ढककर दान किया जाता है। ब्राह्मणों या किसी गरीब और जरूरतमंद व्यक्ति को मिठाई और दक्षिणा भी देनी चाहिए।
इस दिन ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप भी करना चाहिए। इसके साथ ही निर्जला एकादशी की कथा भी पढ़नी या सुननी चाहिए। द्वादशी के दिन सूर्योदय के बाद ब्राह्मण को विधि-विधान से भोजन कराएं और फिर अन्न-जल ग्रहण करें। व्रत करने वाले व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नहाने और नहाने के बाद भूलकर भी पानी का सेवन न करें।
निष्कर्ष (Conclusion)
आज के इस लेख में हमने आपको निर्जला एकादशी का महत्व, निर्जला एकादशी की कथा और पूजा विधि के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख निर्जला एकादशी का महत्व (Importance Of Nirjala Ekadashi In Hindi) अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।