इंटरनेट का विकास | Internet Ka Vikas: हाल के वर्षों में इंटरनेट का विस्तार इतनी तेजी से हुआ है कि पूरी दुनिया हैरान है। दरअसल, इंटरनेट का विस्तार कंप्यूटर के विस्तार से जुड़ा है और कंप्यूटर का विस्तार इंटरनेट से जुड़ा है। दोनों एक-दूसरे के माध्यम से और एक-दूसरे की मदद से अपना-अपना विस्तार कर रहे है। हम कह सकते हैं कि इंटरनेट और कंप्यूटर एक दूसरे के पूरक हैं।
इंटरनेट का विस्तार वर्ल्ड वाइड वेब की उपयोगिता के कारण हुआ है। वर्ल्ड वाइड वेब आज सूचना का सबसे बड़ा स्रोत है, कोई भी व्यक्ति बहुत ही कम खर्च पर उस पर अपनी जरूरत की जानकारी खोज और उपयोग कर सकता है। इस कारण ही इंटरनेट की उपयोगिता बढ़ी हैं।
इंटरनेट के विस्तार का एक अन्य प्रमुख कारण इसकी सरलता और सुगमता है। इंटरनेट से जुड़ना और साइट खोलना उतना ही सरल है जितना कि टेलीफोन पर नंबर डायल करना।
इंटरनेट के विस्तार का तीसरा प्रमुख कारण संचार की सुविधा है, क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से हम बहुत ही कम खर्च पर किसी भी डेटा या सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से स्थानांतरित कर सकते हैं और तुरंत उत्तर प्राप्त कर सकते हैं। यह एक ऐसी सुविधा है जो किसी अन्य माध्यम पर उपलब्ध नहीं है, इंटरनेट और ईमेल के कारण हम पूरी दुनिया से जुड़े हुए हैं। वर्ष 1995 में, इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की संख्या केवल 160000 थी। यह संख्या भी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
इंटरनेट का विकास और इतिहास
- इंटरनेट का इतिहास
- ARPANET का इतिहास | HISTORY OF ARPANET
- 1970 के दशक का विकास
- 1980 के दशक का विकास
- 1990 के दशक का विकास
- इंटरनेट विकास यात्रा | Internet development journey
इंटरनेट का इतिहास
इंटरनेट एक बहुत तेजी से बढ़ने वाला नेटवर्क है। इसकी शुरुआत 1960 के दशक में अमेरिकी रक्षा विभाग में अन्वेषण के कार्य के लिए की गई थी। शुरुआत में इसका नाम ARPANET रखा गया था। 1971 में, कंप्यूटरों के तेजी से विकास और प्रसार के कारण, ARPANET या इंटरनेट लगभग 10,000 कंप्यूटरों का एक नेटवर्क बन गया। बाद में 1987 से 1989 तक इसमें लगभग 100,000 कंप्यूटर शामिल किए गए।
1990 में, ARPANET के स्थान पर इंटरनेट का विकास जारी रहा, जो 1992 में 1 मिलियन कंप्यूटर, 1993 में 2 मिलियन कंप्यूटर और बाद में बढ़ गया। इंटरनेट वास्तव में जनता के लिए संचार और सूचना तक पहुँचने का सबसे तेज़ और सस्ता माध्यम है।
इंटरनेट के विकास में बहुत से लोगों का योगदान है। इसके प्रारंभिक विकास की अवस्था 1950 के दशक की कहीं जा सकती है। यूएसएसआर (सोवियत संघ) से अंतरिक्ष वर्चस्व पुन: प्राप्त करने के लिए (जो कि USSR के 1957 में स्पूतनिक के लांच करने से US के हाथ में चली गई थी), ARPA (एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेन्सी) बनायी बनाई। जिसमें जे.सी.आर. लिकलाइडर कंप्यूटर विभाग के प्रमुख थे।
ARPANET का इतिहास | HISTORY OF ARPANET
ARPANET (एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी नेटवर्क) नेटवर्क 1969 में विकसित किया गया था। इसे रक्षा विभाग द्वारा स्थापित किया गया था। यह नेटवर्क मुख्य रूप से प्रायोगिक था। यह नेटवर्क प्रौद्योगिकी के विकास और परीक्षण और अन्वेषण के लिए बनाया गया था।
प्रारंभिक नेटवर्क सम्पूर्ण अमेरिका की 4 मुख्य यूनिवर्सिटी के चार होस्ट कम्प्यूटर को आपस में जोड़कर बनाया गया था। जिसके माध्यम से उपयोगकर्ता सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। 1972 तब लगभग 32 होस्ट कंप्यूटरों को ARPANET से जोड़ा गया और उसी वर्ष ARPA का नाम बदलकर DARPA (डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी) कर दिया गया। 1973 में, ARPANET ने अमेरिकी सीमाओं को पार करते हुए इंग्लैंड और नॉर्वे से पहला अंतर्राष्ट्रीय कनेक्शन किया।
ARPANET का एक मुख्य उद्देश्य नेटवर्क को चालू रखना था, भले ही नेटवर्क के कुछ हिस्से ने काम करना बंद कर दिया हो। इस क्षेत्र में जो प्रगति हुई वह नेटवर्किंग नियम और प्रोटोकॉल थे जिन्हें टीसीपी/आईपी (ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल) के रूप में संदर्भित किया गया था।
टीसीपी/आईपी प्रोटोकॉल का एक समूह है जो यह निर्धारित करता है कि नेटवर्क पर डेटा कैसे ट्रांसफर होगा। साथ ही, यह विभिन्न प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम (जैसे DOS और UNIX) को नेटवर्क के माध्यम से डेटा साझा करने की सुविधा देता है।
ARPANET एक “बेकबोन” नेटवर्क के रूप में कार्य करता है, यह छोटे लोकल नेटवर्क को आपस में जोड़ता है और जब छोटे नेटवर्क एक बार में बेकबोन से कनेक्ट हो जाते हैं, तो वे आपस में डेटा का आदान-प्रदान भी कर सकते हैं।
1983 में, DARPA ने तय किया कि ARPANET से कनेक्ट होने वाले कंप्यूटरों के लिए TCP/IP प्रोटोकॉल का एक मानक सेट होगा। इसका मतलब यह है कि कोई भी छोटा नेटवर्क (उदाहरण के लिए कोई भी विश्वविद्यालय नेटवर्क) जो ARPANET से जुड़ना चाहता था उसे TCP/IP का उपयोग करना पड़ता था और यह मुफ़्त में उपलब्ध था और लगभग सभी नेटवर्क इसका उपयोग करते थे। TCP/IP प्रोटोकॉल के विस्तार के कारण आज के इंटरनेट का स्वरूप उभरा, जिसे हम “नेटवर्क का नेटवर्क” कहते हैं। इसमें या तो टीसीपी/आईपी का उपयोग होता है या फिर वह टीसीपी/आईपी नेटवर्क से इंटरेक्ट कर सकता है।
1970 के दशक का विकास
1970 के दशक में विकसित मुख्य नेटवर्किंग टूल्स इस प्रकार हैं – 1972 में, एनसीएसए (नेशनल सेंटर फॉर सुपरकंप्यूटिंग एप्लिकेशन) ने रिमोट लॉगिन (जिससे दूर के कंप्यूटर को आसानी से जोड़ा जा सकता है) के लिए टेलनेट एप्लिकेशन बनाया।
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973 में, नेटवर्क कंप्यूटरों के बीच फ़ाइलों के हस्तांतरण के लिए एक मानक FTP (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) बनाया गया था।
1980 के दशक का विकास
1983 की कुछ मुख्य घटनाएँ इस प्रकार हैं- TCP/IP प्रोटोकॉल सूट ARPANET के लिए मानक प्रोटोकॉल सूट बन गया और इंटरनेट का जन्म हुआ। ARPANET को दो भागों MILNET (सैन्य स्थलों के लिए) और ARPANET (गैर-सैन्य स्थलों के लिए) में विभाजित किया गया है।
1989 में (नेशनल साइंस फाउंडेशन) ने देश के छह सुपर कंप्यूटिंग केंद्रों को आपस में जोड़ा जिसे NSFNET या NSFNET बैकबोन नाम दिया गया।
1989 में NSFNET बैकबोन नेटवर्क को “T1” में बदल दिया गया था, जिसका अर्थ था 1.5 मिलियन बिट डेटा या 50 टेक्स्ट पेज प्रति सेकंड का अनुवाद करने की क्षमता।
1990 के दशक का विकास
ARPANET को 1990 में भंग कर दिया गया था। गोफर को 1991 में मिनेसोटा विश्वविद्यालय में विकसित किया गया था। गोफर इंटरनेट पर जानकारी प्रदान करने और खोजने का एक हायरआर्किकल मेनू-आधारित तरीका था। इस टूल ने इंटरनेट को आसान बना दिया।
1993 में, CERN (यूरोपियन सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च), स्विट्जरलैंड (जिनेवा) के वैज्ञानिक टिम-बर्नर-ली ने WWW (वर्ल्ड वाइड वेब) विकसित किया। WWW. इंटरनेट पर सूचना को व्यवस्थित, प्रदर्शित और एक्सेस करने के लिए (हाइपर टेक्स्ट ट्रांसफर प्रोटोकॉल) और हाइपरलिंक का उपयोग करता है।
1993 में, NSFNET बैकबोन “T3” में बदल गया, जिसका अर्थ है कि इसमें 45 मिलियन बिट डेटा या 1400 टेक्स्ट पेज एक सेकंड में संचारित करने की क्षमता है।
1993-94 में, मोज़ेक और नेटस्केप नेविगेटर जैसे ग्राफिकल वेब ब्राउज़र ने बाज़ार में प्रवेश किया और इंटरनेट समुदाय में एक चलन बन गया। इन ब्राउज़रों की ग्राफिकल क्षमताओं के कारण WWW और इंटरनेट आम आदमी तक अधिक आसानी से पहुँच सके।
1995 में NSFNET बैकबोन को नेटवर्क आर्किटेक्चर द्वारा बदल दिया गया था। इस आर्किटेक्चर का नाम vBNS (वेरी हाई-स्पीड बैकबोन नेटवर्क सर्विस) है जो NSPs (नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर्स), रीजनल नेटवर्क्स और NAPs (नेटवर्क एक्सेस प्वाइंट) का उपयोग करता है।
इंटरनेट विकास यात्रा | Internet development journey
1962 से 1969
यह वह दौर था जिसमें इंटरनेट की अवधारणा की गई थी और इंटरनेट कागजी अवधारणा से एक छोटे नेटवर्क के रूप में उभरा।
1962
पॉल बैरन, रैंड कॉर्पोरेशन पैकेट स्विच तकनीक पर आधारित एक कंप्यूटर नेटवर्क की परिकल्पना की|
1967
एडवांस रिसर्च प्रोजेक्ट एजेंसी (ARPA), जो एक सैन्य संगठन था, ने ARPANET के निर्माण के संबंध में चर्चा शुरू की।
1969
ARPANET बनाया गया था, जिसके तहत 4 अमेरिकी संस्थानों स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट, UCLA, UC, SANTA, BARBARA और UTAH विश्वविद्यालयों में स्थित एक कंप्यूटर को जोड़कर 4 कंप्यूटरों का एक नेटवर्क बनाया गया था।
1970 से 1973
ARPANET परियोजना शुरू से ही एक सफलता थी। हालांकि इसके निर्माण का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिकों के बीच डेटा एक्सचेंज और रिमोट कंप्यूटिंग था, लेकिन ईमेल सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला माध्यम बन गया।
1971
अब 23 कंप्यूटर ARPANET से जुड़े थे, ये कंप्यूटर अमेरिका के विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में लगाए गए थे।
1972
इंटरनेट वर्किंग ग्रुप (INWG) को बढ़ते नेटवर्क के लिए मानक निर्धारित करने के लिए बनाया गया था, इसके पहले अध्यक्ष विंटन सेर्फ़ थे, जिन्हें इंटरनेट का जनक कहा जाता है।
1973
अमेरिका से बाहर लंदन स्थित यूनिवर्सिटी कॉलेज और नार्वे स्थित रॉयल रडार संस्थान के कंप्यूटर ARPANET से कनेक्ट किये गए|
1974 से 1981
ARPANET सैन्य अनुसंधान से निकला और इसी अवधि में आम लोगों को आम जीवन में कंप्यूटर नेटवर्क के संभावित उपयोग के बारे में पता चला।
1974
TELNET का विकास हुआ और ARPANET का व्यावसायिक उपयोग संभव हो गया।
1975
ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ ने पहली बार ईमेल भेजा, एक स्टोर और फॉरवर्ड प्रकार का नेटवर्क बनाया गया।
1976
यूसीपी (यूनिक्स टू यूनिक्स कॉपी) को एटी एंड टी बेल लेबोरेटरी द्वारा विकसित किया गया था जिसे बाद में यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ बेच दिया गया था।
1977
थ्योरीनेट को यूयूसीपी का उपयोग करके बनाया गया था, जिसके माध्यम से शोध कार्य में लगे 100 से अधिक वैज्ञानिकों को ईमेल सुविधा उपलब्ध कराई गई थी।
1979
DUKE विश्वविद्यालय के टॉम ट्रस्कॉट और जिम एलिस और उत्तरी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के स्टीव वेलोविन ने पहला यूज़नेट समाचार समूह बनाया। इस समाचार समूह में भाग लेने वाला कोई भी व्यक्ति आपस में धर्म, राजनीति विज्ञान और किसी अन्य विषय पर चर्चा कर सकता था।
1981
ARPANET में 213 होस्ट कंप्यूटर थे और औसतन लगभग 20 दिन बाद एक होस्ट कंप्यूटर जुड़ने लगा।
1982 से 1987
इसी अवधि में, ARPANET के स्थान पर इंटरनेट शब्द का उपयोग किया गया और विंटन सर्फ एवं बॉब कान ने इंटरनेट से जुड़े सभी कंप्यूटरों के लिए एक सामान्य प्रोटोकॉल विकसित किया ताकि कंप्यूटर आसानी से सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकें। इसी समय पर्सनल कंप्यूटर और अन्य सस्ते कंप्यूटर विकसित हुए। जिसके फलस्वरूप इंटरनेट का और तेजी से विकास हुआ।
1982
टीसीपी आईपी (ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल) सभी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के लिए विकसित किया गया है, जो एक सामान्य प्रोटोकॉल है। इंटरनेट नाम का पहली बार प्रयोग किया गया।
1983
ARPANET को दो भागों MILI NET और ARPANET में बांटा गया।
1984
डोमेन नेम सर्वर सिस्टम विकसित किया गया था।
जूनेट (जापान यूनिक्स नेटवर्क) यूयूसीपी का उपयोग करके बनाया गया।
इंटरनेट पर होस्ट कंप्यूटरों की संख्या 1000 से अधिक हो गई है।
इंटरनेट को पहली बार साइबरस्पेस का नाम दिया गया।
1986
NSFNET और FREENET विकसित किए गए थे।
1987
इंटरनेट होस्ट कंप्यूटरों की संख्या 10000 से अधिक हो गयी UUNET बनाई गया। ताकि यूयूसीपी और यूज़नेट का वाणिज्यिक उपयोग शुरू हो सके।
1988 से 1990
इस काल में इंटरनेट को संचार का माध्यम माना जाने लगा। इसके साथ ही यूजर्स ने सूचनाओं के सुरक्षित आदान-प्रदान और कंप्यूटर की सुरक्षा पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया। क्योंकि इसी अवधि में एक कंप्यूटर प्रोग्राम “इंटरनेट वर्म” ने इंटरनेट से जुड़े लगभग 6000 कंप्यूटरों को अस्थायी रूप से अनुपयोगी बना दिया था।
1988
इंटरनेट और कंप्यूटर प्रोग्राम में, इंटरनेट से जुड़े 6000 कंप्यूटर को अस्थायी रूप से निष्क्रिय बना दिया। कंप्यूटर नेटवर्क सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम का गठन किया गया था।
1989
इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों की संख्या एक लाख से अधिक हो गई। BITNET और CSNET को मिलाकर कॉर्पोरेशन फॉर रिसर्च एंड एजुकेशन नेटवर्किंग का गठन किया गया था।
1990
ARPANET को समाप्त कर दिया गया और इंनेटवर्क ऑफ नेटवर्क्स के रूप में इंटरनेट शेष रहा। होस्ट कंप्यूटरों की संख्या 300000 हो गई। पीटर डिक्शन, एलन एक्टेज और बिल हॉलन ने ARCHIE जारी किया। ताकि इंटरनेट के कंप्यूटर पर उपलब्ध सामग्री को आसानी से एक्सेस किया जा सके।
1991 से 1993
यह वह दौर था जब इंटरनेट उच्चतम ऊंचाइयों पर पहुंच गया था। इंटरनेट का व्यावसायिक उपयोग काफी बढ़ गया।
1991
GOPHER को पॉल लिंडर और मार्क मैकहिल द्वारा विकसित और जारी किया गया था।
वाइड एरिया इंफॉर्मेशन सर्वर विकसित किया गया था।
इंटरनेट पर आदान-प्रदान किए गए डेटा की मात्रा एक ट्रिलियन बाइट्स से ज्यादा हो गई।
1992
इंटरनेट पर ऑडियो और वीडियो भेजना संभव पाया।
इंटरनेट सोसायटी की स्थापना की गई।
टिम बर्नर्स ली नेवर्ल्ड वाइड वेब का विकास किया था।
इंटरनेट से जुड़े 1 लाख से ज्यादा होस्ट कंप्यूटर।
1993
मोज़ेक नाम का पहला ग्राफिक आधारित वेब ब्राउज़र विकसित किया गया ।
INTERNIC का गठन इंटरनेट से संबंधित सेवाओं में एकरूपता प्रदान करने और प्रबंधन करने के उद्देश्य से किया गया था।
1994 से 1998
लगभग 40 मिलियन यूज़र्स इंटरनेट से जुड़े थे और इस अवधि में इंटरनेट का युग शुरू हुआ।
इंटरनेट शॉपिंग शुरू।
विज्ञापनदाताओं ने इंटरनेट पर विज्ञापन देना शुरू कर दिया।
1995
NSFNET फिर से अनुसंधान गतिविधियों तक सीमित था।
सन माइक्रोसिस्टम्स में इंटरनेट प्रोग्रामिंग भाषा Java विकसित की।
1996
इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों की संख्या 10 मिलियन से भी ज्यादा हो गई।
150 से जायदा देशों के कंप्यूटर इंटरनेट से जुड़े थे।
1997
इंटरनेट ने आम लोगों के मध्य अपनी पहचान बनाई और इसके बिना आज जिंदगी अधूरी सी लगती है।
1998
भारत में हर जगह इंटरनेट को पहुंचाने का प्रयास शुरू हुए।
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान नीति तैयार की गई।
1999 से अब तक
अब इसमें कई संशोधन कर इसे और सरल कर दिया गया है। नतीजा यह हुआ कि इस नेटवर्क के लिए एक मानक सुनिश्चित कर इसे असैन्य कंपनियों के इस्तेमाल के लिए खोल दिया गया और अब इसमें हर तरह की जानकारी को भी जोड़ा गया। इस प्रकार एक विशाल नेटवर्क का जन्म हुआ जिसे आज हम इंटरनेट के नाम से जानते हैं।
निष्कर्ष
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