होली कब है 2024 (Holi Kab Hai 2024): रंगों का त्योहार होली बहुत जल्द ही आने वाला है। इस दिन पूरा देश होली के रंग में रंग जाता है। रंगों का त्योहार होली पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। होली की तैयारी होलाष्टक के दिन से शुरू हो जाती है। होलाष्टक होली के आठ दिन पहले लग जाता है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य की मनाही रहती है।
होली कब है 2024? (When Is Holi In Hindi 2024)
सनातन धर्म में फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली (Holi) का पर्व होली बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2024 में होली का पर्व 25 मार्च को पड़ रहा है। वहीं 24 मार्च को होलिका दहन किया जाएगा। जिसे छोटी होली (Holi) के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन पूरा देश होली के रंग में रंग जाता है।
होलिका दहन तिथि 2024 (Holika Dahan Date 2024)
होली तिथि – 25 मार्च 2024
होलिका दहन तिथि – 24 मार्च 2024
होलिका दहन शुभ मुहूर्त – 23:15:58 से 24:23:27 तक
होलिका दहन की अवधि – 1 घंटे 7 मिनट
भद्रा पुँछा – 18:49:58 से 20:09:46 तक
भद्रा मुखा – 20:09:46 से 22:22:46 तक
होलिका दहन कब होगा? (When Is Holika Dahan 2024)
होलिका दहन इस वर्ष 24 मार्च 2024 को होगा। वहीं, होली का पर्व 25 मार्च 2024 को मनाया जाएगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 23:15:58 से 24:23:27 तक होगा। 1 घंटे 7 मिनट के इस शुभ मुहूर्त के मध्य कभी भी होलिका दहन किया जा सकेगा।
होलिका दहन कैसे किया जाता है? (Holika Dahan Kaise Kiya Jata Hai)
होलिका दहन में जमीन में किसी पेड़ की शाखा को गाड़कर उसे चारों ओर से लकड़ी, कंडे या उपले से ढककर निश्चित मुहूर्त में जलाया जाता है। इसमें छेद वाले गोबर के उपले, गेहूं की नई बालियां व उबटन जलाया जाता है। ताकि वर्ष भर आरोग्य मिले।
होली की पौराणिक कथा (Holi Story In Hindi)
पौराणिक कथाओ के अनुसार, एक दैत्य राजा हिरण्यकश्यप स्वयं को भगवान समझता था। लोगों से वह अपनी पूजा करने को कहता, पर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। अपने पिता की बात प्रहलाद
नहीं मानता था। वह भगवान विष्णु की ही भक्ति करता. नाराज पिता ने अपने पुत्र को मारने का निर्णय किया।
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि प्रहलाद को गोद में लेकर वह आग में बैठ जाए, क्योंकि आग में होलिका जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी। आग की लपटों के मध्य होलिका की गोद में बैठा प्रहलाद भगवान नारायण का नाम लेता रहा। प्रभु की कृपा से वह बच गया व होलिका जलकर राख हो गई।
होलिका की यह हार बुराई के नाश का प्रतीक है। जिसके बाद से होलिका दहन का प्रचलन शुरू हुआ व होली (Holi) का पर्व मनाए जाने लगा।
होली मनाने के 4 कारण (Reasons To Celebrate Holi In Hindi)
पहला कारण – होली (Holi) मनाने के पीछे सबसे लोकप्रिय मान्यता हिरण्यकश्यप की बहन होलिका का विष्णु भक्त प्रहलाद द्वारा वध करना है। हिरण्यकश्यप एक राक्षस था। जिसका प्रहलाद नाम का एक पुत्र था। प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था लेकिन हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था। वह नहीं चाहता था कि उसके राज्य में कोई भी भगवान विष्णु की पूजा करे। प्रहलाद दिन-रात भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहता था। जिसके कारण हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को मारने की कई बार कोशिश की लेकिन बार-बार असफल रहा। तब हिरण्यकशिपु ने भक्त प्रहलाद को मारने के लिए अपनी बहन होलिका को भेजा।
दूसरा कारण – एक अन्य मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण ने पूतना नामक राक्षस का वध किया था। दानव पूतना के वध के बाद बृजवासी खुशी के चलते आपस में रंग खेलते हैं।
तीसरा कारण – भगवान शिव से जुड़ी एक मान्यता है, जिसमें फाल्गुन मास की पूर्णिमा को शिव गण रंग लगाकर नाचते और गाते हैं।
चौथा कारण – मुगल काल के समय में भी भारत में होली (Holi) मनाई जाती है। इतिहास में बादशाह अकबर का जोधाबाई के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। मुगल काल में इसे ईद-ए-गुलाबी कहा जाता था। तब लोग एक दूसरे पर रंग बरसाकर होली का त्योहार मनाते थे।
होलिका दहन के अगले वाले दिन को धुलेंडी क्यों कहा जाता है?
पूरे भारतवर्ष में होली (Holi) का त्योहार बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। एक दूसरे पर लोग अबीर गुलाल व रंग डालते हैं। उमंग और उल्लास को यह त्योहार दर्शाता है। होलिका दहन प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। और उसके अगले दिन यानी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंग वाली होली (Holi) मनाई जाती है। जिसे रंग वाली होली या धुलेंडी कहते है। पर क्या आपको पता है कि रंग वाली होली को क्यों कहते हैं धुलेंडी, और कब से शुरू हुई यह परंपरा।
धुलेंडी, होलिका दहन के अगले दिन मनाई जाती है। लोग इस दिन जमकर पानी व रंगो से होली (Holi) खेलते हैं। धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन और चैत बदी आदि नामों से धुलेंडी को जाना जाता है। धुलेंडी का त्योहार आज के वक्त में एक दूसरे पर रंग व अबीर गुलाल डालकर मनाया जाता है। लेकिन धुलेंडी का त्योहार पहले के समय में बहुत ही अलग तरह से मनाया जाता था। इस दिन को उसी पंरपरा के नाम पर धुलेंडी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेतायुग के प्रारम्भ में भगवान विष्णु ने धूलि वंदन किया था। तभी से इस दिन धूलिवंदन मतलब एक दूसरे पर धूल लगाने की पंरपरा आरम्भ हुई। एक दूसरे पर धूल लगाने की वजह से ही इस दिन को धुलेंडी कहा जाता है।
पुराने वक्त में जब लोग एक दूसरे पर धूल लगाते थे तो उसे धूलि स्नान कहते थे । कुछ जगहों पर आज भी खासतौर पर गांवो में लोग एक दूसरे धूल आदि लगाते हैं। पहले के समय में लोग चिकनी या मुल्तानी मिट्टी भी शरीर पर लगाया करते थे। इसके अतिरिक्त पहले के समय में इस दिन धूल के साथ टेसू के फूलों के रस से बने हुए रंग का इस्तेमाल किया जाता था व रंगपंचमी पर होली (Holi) अबीर गुलाल से खेली जाती थी। वर्तमान समय में धुलेंडी का रूप बदल चूका है।
पहले धुलेंडी के दिन सूखा रंग सिर्फ उन घरों में ही डालने की पंरपरा थी। जिन घरों में विगत वर्ष किसी की मौत हुई हो। धुलेंडी पर आज भी लोग उन लोगों के घर मिलने जाते हैं व गुलाल से टीका लगाकर होली (Holi) (धुलेंडी) {Holi (Dhulendi)} की परंपरा का निर्वहन करते हैं।
धुलेंडी पर गले मिलने की पंरपरा
इस बारे में कहा जाता है कि भक्त प्रहलाद को जब मारने के सारे प्रयास निष्फल हो गए तो हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी। अग्नि में न जलने का वरदान होलिका को प्राप्त था। होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ गई, पर भक्त प्रहलाद का विष्णु जी की कृपा से बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिक अग्नि में जलकर राग हो गई। कहते है कि भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में लोग इस दिन एक दूसरे के गले मिले व मिठाइयां बांटी। इसके अतिरिक्त एक दूसरे से गले मिलने की परंपरा भाई चारे (मिलजुलकर रहने) का मैसेज देती है।
होली पर रंग व गुलाल का क्यों होता है प्रयोग?
होली (Holi) का सीधा मतलब रंग व गुलाल के संग मस्ती है। इसलिए लोग होली (Holi) आने से कुछ दिन पूर्व ही रंग गुलाल के साथ मौज मस्ती करने शुरू हो जाते हैं। रंग और गुलाल लगाते वक्त इस बात का किसी को भी ध्यान ही नहीं रहता कि कौन अपना है व कौन पराया है। होली (Holi) पर सभी एक रंग में रंग जाते हैं। यह रंग प्यार और आनंद का रंग होता है । कैसे आम लोगों के जीवन में होली पर रंगों का हुड़दंग आया इसका जवाब आपने कभी ढूंढा है। आइये आज उन 5 कारणों के विषय में जानें जिससे होली (Holi) पर रंगों के संग हुड़दंग चलता है।
सबसे प्रचलित कहानी होली (Holi) के बारे में प्रहलाद और होलिका की। ब्रह्मा जी से हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान स्वरूप एक वस्त्र प्राप्त था। जिसे ओढने के पश्चात आग उसे नहीं जला पाती। इस वरदान का लाभ उठाकर भगवान विष्णु के भक्त और अपने पुत्र प्रहलाद को हिरण्यकश्यप ने मरवाना चाहा। इसके लिए प्रहलाद को होलिका लकड़ियों के ढ़ेर पर लेकर बैठ गई। जब लकड़ियों में आग लगाई गई तब हवा के झोंके से अग्नि से रक्षा करने वाला वस्त्र उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गया इससे प्रहलाद जीवित बच गया व होलिका (Holika) जलकर मर गई। जब इस घटना की जानकारी लोगों को मिली तो अगले दिन खूब रंग गुलाल के संग लोगो ने आनंद उत्सव मनाया। इसके बाद से ही होली पर रंग गुलाल संग मस्ती की परंपरा प्रारम्भ हो गई।
दूसरी वजह होली (Holi) पर उत्सव मनाने की भगवान शिव और देवी पार्वती की पहली मुलाकात है। कथा अनुसार तारकासुर का वध करने हेतु भगवान शिव व पार्वती का विवाह जरुरी था। पर भगवान भोलेनाथ तपस्या में लीन थे। ऐसे में देवी पार्वती से भगवान शिव को मिलाने के लिए देवताओं ने कामदेव व रति की सहायता ली । भगवान शिव का कामदेव ने ध्यान भंग कर दिया इससे नाराज होकर भोलेनाथ ने कामदेव को भष्म कर दिया। पर इस घटना में देवी पार्वती को शिव जी ने पहली बार भी देखा। कामदेव के भष्म होने के पश्चात रति ने विलाप करना आरम्भ कर दिया। भगवान शिव ने देवताओं के अनुरोध पर कामदेव को बिना शरीर के रति के साथ रहने का आशीर्वाद दिया व श्री कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में कामदेव को पुनः शरीर की प्राप्ति हुई। देवताओं ने शिव पार्वती के मिलन व कामदेव को पुनः जीवन मिलने की खुशी में रंगोत्सव मनाया।
श्री कृष्ण के वध के लिए पूतना नामक राक्षसी को कंस ने भेजा। श्री कृष्ण का पूतना ने अपहरण कर लिया व अपने जहरीले दूध का स्तनपान कराने लगी। स्तनपान करते वक्त श्री कृष्ण ने पूतना के प्राण छीन लिए व उसकी मृत्यु हो गयी। श्री कृष्ण को लोगों ने जब पूतना के शरीर पर जीवित खेलते हुए पाया तो आनंद से झूम उठे। पूतना का अंतिम संस्कार किया गया व रंगोत्सव मनाया गया। आज भी गोकुलवासी इसी परंपरा को मनाते हुए रंग गुलाल से होली खेलते हैं।
होली (Holi) श्री कृष्ण की लीलाओं में राधा संग खेलने की भी कथाएं मिलती हैं। राधा के गांव बरसाने जाकर गोपियों संग भगवान श्री कृष्ण होली खेलते थे। इसके अगले दिन बरसाने वाले नंदगांव आकर होली का उत्सव मनाते थे। इसी परंपरा के चलते बरसाने व नंद गांव में आज भी रंग गुलाल के साथ लट्ठमार होली (Holi) खेली जाती है।
होली से पूर्व क्यों की जाती है अग्नि की पूजा?
अग्नि पूजा सुख-समृद्धि के लिए – होलिका दहन से पहले अग्निदेव की पूजा का विधान है। अग्निदेव पंचतत्वों में मुख्या माने जाते हैं जो अग्नितत्व के रूप में समस्त जीवात्माओं के शरीर में विराजमान रहते हुए जीवन भर उनकी रक्षा करते हैं। सभी जीवों के साथ अग्निदेव एक समान न्याय करते हैं। इसलिए सनातन धर्म को मानने वाले सभी लोग भक्त प्रहलाद (Prahlad) पर आए संकट को टालने व अग्निदेव द्वारा ताप के बदले उन्हें शीतलता देने की प्रार्थना करते हैं। हमारे सभी धर्मग्रंथों में होलिका दहन (Holika Dahan) में मुहूर्त का ख़ास ध्यान रखने की बात कही गई है।
नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा को भद्रारहित प्रदोषकाल में अग्नि प्रज्ज्वलन सर्वोत्तम माना गया है। परिवार के सभी सदस्यों को होलिका दहन के समय एक साथ नया अन्न मतलब गेहूं, जौ एवं चने की हरी बालियों को लेकर पवित्र अग्नि में समर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से शुभता का घर में आगमन होता है। धर्मरूपी होली (Holi) की अग्नि को अतिपवित्र माना गया है इसलिए इस अग्नि को लोग अपने घर लाकर चूल्हा जलाते हैं। और इस अग्नि से कहीं-कहीं तो अखंड दीप जलाने की भी परंपरा है। माना जाता है कि इससे न सिर्फ कष्ट दूर होते है बल्कि सुख-समृद्धि भी आती है।
विज्ञान क्या कहता है – होली के पर्व से शिशिर ऋतु का समापन व वसंत ऋतु का आगमन होता है। आयुर्वेद के मुताबिक मानव शरीर 2 ऋतुओं के संक्रमण काल में रोग व बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। शरीर में कफ की मात्रा इस ऋतु में बढ़ जाती है और वसंत (Vasant) ऋतु में तापमान बढ़ने पर कफ के बॉडी से बाहर निकलने की प्रक्रिया में कफदोष पैदा होता है। जिसके वजह से सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियाँ सहित गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते है। मध्यम तापमान होने की वजह से यह मौसम शरीर में आलस्य भी पैदा करता है। इसलिए होलिका दहन के विधानों में आग जलाना,अग्नि परिक्रमा,नाचना, गाना आदि स्वास्थ्य की दृष्टि से शामिल किए गए है। जहां रोगाणुओं को अग्नि की ताप नष्ट करती है, वहीं शरीर में खेल-कूद की अन्य गतिविधियां जड़ता नहीं आने देती। इससे कफदोष दूर हो जाता है। साथ ही शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है. एवं शरीर स्वस्थ्य बना रहता है।
महर्षि वशिष्ठ ने होली पर मांगा था अभयदान ताकि नर-नारी खेल सकें होली
फागुन की पूर्णिमा और उसके अगले दिन मूल त्योहार माना जाता है। पर शुरुआत आठ दिन, पहले होलाष्टक से हो जाती है। दहन स्थान को होली (Holi) से आठ दिन पहले गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकड़ी, सूखी घास व होली का डंडा स्थापित किया जाता है। यह स्थापना जिस गांव गली मोहल्ले के चौराहे पर होती है। होलिका दहन तक उस क्षेत्र में कोई शुभ कार्य नहीं होता।
होलाष्टक की शुरुआत कैसे हुई थी?
मुख्य रूप से होलाष्टक पंजाब व उत्तरी भारत में मनाया जाता है। इसके विषय में यह माना जाता है कि जब भगवान शिव ने क्रोध में आकर कामदेव को भस्म किया था, तो उस दिन से होलाष्टक (holashtak) की शुरुआत हुई थी।
होली (Holi) राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडू, गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, उडीसा, गोवा आदि में अलग ढंग से मनाने का चलन है। होलाष्टक से जुड़ी मान्यताओं को जिन प्रदेशों में नहीं माना जाता है। उन सभी प्रदेशों में होलाष्टक से होलिका दहन के बीच की अवधि में शुभ कार्य करने बंद नहीं किए जाते।
बरसाने की लट्ठमार होली
देश और दुनिया में भी बरसाने की लट्ठमार होली काफी प्रसिद्ध है। बरसाने में लट्ठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है। यहां लोग रंगों, फूलों के अतिरिक्त डंडों से होली खेलते हैं।
धार्मिक मान्यता है कि राधा जी का जन्म बरसाना में हुआ था। नंदगांव के लोग फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को होली खेलने के लिए बरसाना गांव जाते हैं। जहां पर लट्ठमार होली लड़कियों व महिलाओं के संग खेली जाती है। इसके पश्चात फाल्गुन शुक्ल की दशमी तिथि पर रंगों की होली (Holi) खेली होती है।
भगवान कृष्ण के समय से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि अपने दोस्तों संग भगवान कृष्ण नंदगांव से बरसाना जाते थे। वे बरसाना पहुंचकर राधा व उनकी सखियों के साथ होली (Holi) खेलते थे। इस दौरान कृष्णजी राधा संग ठिठोली करते हैं जिसके पश्चात उन पर वहां की सारी गोपियां डंडे बरसाती थी।
नंदगांव के ग्वाले गोपियों के डंडे की मार से बचने के लिए लाठी व ढ़ालों का सहारा लेते थे। यही परंपरा धीरे-धीरे चली आ रही है जिसका पालन आजतक किया जा रहा है। पुरुषों को हुरियारे व महिलाओं को हुरियारन कहा जाता है। इसके पश्चात सभी मिलकर रंगों से होली (Holi) का उत्सव मनाते है।
ब्रज में बसंत पंचमी से हो जाती है होली की शुरुवात
होली के उत्सव की धूम ब्रज में बसंत पंचमी से हो जाती है। होली का डांडा बसंत पंचमी के दिन से ही रोपा जाता है। उसके बाद राधारानी को महाशिवरात्रि पर श्रीजी मंदिर में 56 भोग लगाएं जाते हैं। नंदगांव में अष्टमी के दिन होली का निमंत्रण दिया जाता है। इसके पश्चात होली की हुड़दंग नवमी तिथि को शुरू हो जाती हैं। हर तरफ वातावरण रंगो से सराबोर हो जाता है। नाचते गाते हुए नंदगांव के पुरूष बरसाने पंहुचते हैं। ये लोगो सबसे पहले पीली पोखर पहुंचते हैं। यह इनका पहला पड़ाव होता है। सभी लोग इसके बाद राधारानी के मंदिर पर दर्शन करते हैं। और रंगीली चौक पर लट्ठमार होली आरम्भ होती है। इसी तरह से दशमी तिथि पर नंदगावन में होली खेली जाती है।
यहां राधा कृष्ण के मंदिरों को फूलैरा दूज पर फूलो से सजाया जाता है। फूलों की होली खेली जाती है। इसके पश्चात पूरे ब्रज में फाल्गुन मास नवमी तिथि से ही हर तरफ रंग ही रंग दिखाई देता है। बरसाने की लट्ठमार होली (Holi) को होरी कहा जाता है। होरी गीत भी इस दिन गाया जाता है जो राधा-कृष्ण के वार्तालाप पर आधारित है। 16वीं शताब्दी से यहां पर होली (Holi) की परंपरा की शुरूआत मानी जाती है।
नंदगांव के पुरूष इस दिन बरसाने आकर राधा रानी के मंदिर पर झंडा फहराने का प्रयास करते हैं। तभी एकजुट होकर बरसाने की महिलाएं उन्हें लट्ठ से खदेड़ने का प्रयास करती हैं। परंतु इस वक्त पुरूष किसी भी प्रकार का प्रतिरोध नहीं करते हैं, वे सिर्फ महिलाओं पर गुलाल छिड़ककर उनका ध्यान बंटाते हुए मंदिर पर झंडा फहराने की कोशिश करते हैं। एक अलग ही रौनक इस दौरान देखने को मिलती है। और जो पुरूष पकड़े जाते हैं, उनकी पिटाई की जाती है। वे लोग इस दौरान ढाल से अपने आपको बचाने का प्रयास करते हैं। महिलाओं के कपड़े पुरूषों को पहनाने के साथ श्रंगार किया जाता है।
होली के उपाय
मालिश करें सरसों के उबटन से – घर के सभी सदस्यों को होलिका दहन की रात सरसों का उबटन बनाकर पूरे शरीर पर मालिश करना चाहिए। जो भी मैल इससे निकले उसे होलिकाग्नि में डाल दें। ऐसा करने से जादू टोने का असर खत्म होता है।
भस्म की ताबीज बनाए और पहनें – अगर किसी के ऊपर नेगेटिव ऊर्जा हावी है तो होलिका (Holika) की भस्म को ताबीज में बांधकर पहनने से बुरी आत्माओं का साया व टोने-टोटके का असर उसके ऊपर नहीं रहता है।
होलिका की भस्म लगाएं माथे पर – होली की भस्म को शास्त्रों में काफी शुभ माना गया है। होलिका की राख को माथे पर लगाने से अच्छा परिणाम मिलते है। और नेगेटिव शाक्तियां दूर हो जाती है।
घर के कोने-कोने में छिड़कें भस्म –होलिका दहन (Holika Dhan) की भस्म को बहुत ही शुभ माना जाता है। घर में इस भस्म को लाकर हर कोने में छिड़कने से नेगेटिव ऊर्जा का असर नहीं रहता।
भस्म शिवलिंग को करें अर्पित – यदि किसी की कुंडली में ग्रह दोष है तो जल में होली की राख को मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। इस उपाय को कारण से ग्रह दोष समाप्त हो जाता है।
धन लाभ पाने के लिए यह उपाय – होलिका दहन (Holika Dahan) के समय परिक्रमा लेते वक्त अग्नि में चना, मटर, गेहूं, अलसी जरूर डालें। धन लाभ का इसे अचूक उपाय माना गया है। वहीं होली (Holi) वाली रात पीपल के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाकर, पीपल के पेड़ की 7 परिक्रमा लगाएं। ऐसा करने से सभी आर्थिक बाधाओं को दूर किया जा सकता हैं।
धन प्राप्ति के लिए करें यह उपाय – अगर अपनी आर्थिक समस्याओं से छुटकारा पाना चाहते हैं तो होलिका दहन (Holika Dahan) की रात 21 गोमती चक्र को शिवलिंग पर चढ़ा दें, व सुबह अपनी तिजोरी या गल्ले में उनको उठाकर रख दें। आपकी आर्थिक समस्याओं को यह उपाय दूर कर सकता है।
सुख-समृद्धि के लिए उपाय – होलिका दहन (Holika Dahan) के दिन घर के मुखिया को होलिका दहन (Holika Dahan) में एक लौंग एक बताशा व एक पान का पत्ता चढ़ाना चाहिए। उसके बाद होलिका की 3 परिक्रमा करते हुए होलिका (Holika) में सूखे नारियल की आहुति देनी चाहिए। इससे ना सिर्फ सभी कष्ट दूर होते हैं बल्कि घर में सुख समृद्धि भी बढ़ती है।
आमदनी में वृद्धि के लिए – होलिका दहन (Holika Dahan) के बाद उसकी थोड़ी भस्म घर अवश्य लाएं। किसी महत्वपूर्ण कार्य में उसका टीका किया जाता है। पुरुष अपने मस्तक पर व स्त्री अपने गर्दन में लगाएं तो कार्यों में कामयाबी मिलेगी और धन समृद्धि में भी वृद्धि होगी।
मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए उपाय – होलिका दहन (Holika Dahan) के वक्त होलिका को सरसों के कुछ दाने अर्पित करें और फिर मां लक्ष्मी को याद करें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा जीवन में बरसती है और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
होलाष्टक के दौरान क्या करें और क्या न करे
- होलाष्टक में शुभ कामो के करने की मनाही होती है। पर इन दिनों पर देवी-देवताओं की पूजा अवश्य करनी चाहिए।
- कोई भी विवाह का मुहू्र्त इन 8 दिनों के दौरान नहीं होता है। इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य इस समय नहीं करना चाहिए।
- गृह प्रवेश इस दौरान नहीं करना चाहिए। साथ ही इस दौरान भूमि पूजन की भी मनाही होती है
- किसी तरह का हवन इत्यादि का भी आयोजन नहीं करना चाहिए।
न करे ये गलतियां
होश न खोएं – रंग और उमंग से जुड़े होली के त्योहार पर अक्सर लोग जोश में होश खो बैठते हैं। होली (Holi) के दिन कई लोग भांग, शराब आदि के नशे में धुत्त हो जाते हैं। जिससे न सिर्फ खुद बल्कि पूरे परिवार को परेशानी होती है। होली के दिन किसी भी तरह के नशे से दूर रहें ताकि रंग में भंग न घुले।
दिन में न सोएं – कुछ लोगों के लिए छुट्टी सोने के लिए लकी ड्रॉ की तरह होती है। और लोग उस दिन देर तक सोते हैं या कुछ लोग शाम को सोते हैं। होली का पर्व साधना का पर्व है। इस शुभ दिन पर सुबह और शाम को नहीं सोना चाहिए। होली (Holi) के दिन केवल बीमार, बूढ़ी और गर्भवती महिलाओं को ही सोने की अनुमति है।
किसी का भी तिरस्कार न करें – होली के दिन सभी एक रंग में रंग जाते हैं और बड़े और छोटे का भेद मिट जाता है। ऐसे में इस दिन किसी का तिरस्कार करने से बचना चाहिए। होली के दिन बड़ों का विशेष सम्मान करें और इस बात का पूरा ध्यान रखें कि आपकी किसी भी बात से उन्हें ठेस न पहुंचे।
मनमुटाव न रखें – होली के दिन घर में किसी भी तरह का मनमुटाव या किसी से झगड़ा न करें। इस दिन किसी भी तरह के तू-तू, मैं करने से बचें और परिवार और दोस्तों के साथ त्योहार का पूरा आनंद लें। होली के दिन भूलकर भी किसी पर क्रोध न करें। इस बात का ध्यान रखें कि जिनको बात-बात पर गुस्सा आता हो और जिनके घर में हमेशा कलह बनी रहती हो, उनके घर में लक्ष्मी नहीं आती।
अपशब्द का प्रयोग न करें – होली के दिन घर में अपशब्दों का प्रयोग न करें और न ही किसी के साथ अभद्र व्यवहार करें। होली के पावन पर्व पर महिलाओं का मान सम्मान और बड़ों के सम्मान का पूरा ध्यान रखें। रंग लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि वह दूसरे व्यक्ति की आंख, नाक, कान, मुंह में न जाए।
खानपान पर ध्यान दें – होली के त्योहार पर पकवान बनाना तो सामान्य बात है, लेकिन यह पकवान आपकी सेहत खराब न करे, होली के दिन इसका पूरा ध्यान रखें। विशेष रूप से भांग आदि मिलाकर कोई भी व्यंजन न बनाएं। अगर आप इसे बनाते हैं तो इसे खिलाने से पहले किसी को जरूर बताएं। नकली खोये, मिठाई, घी आदि से भी सावधान रहें।
शुभ कार्य न करें – होलाष्टक लगाने के बाद मुंडन, सगाई, शादी, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य न करें। होली (Holi) के दिन भूलकर भी पैसों का लेन-देन न करें। न किसी से कर्ज लें और न ही किसी को दें। बल्कि अगले दिन सुबह उठकर होली (Holi) जलाकर होलिका की राख (सात चुटकी) घर ले आएं। अब इस राख को सात छेद वाले सिक्के के साथ लाल कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख दें। होली पर किए गए इस उपाय से घर में धन की वृद्धि होगी। अगर आप इस कपड़े को अपनी दुकान के मुख्य द्वार पर टांग देंगे तो दुकान और व्यापार में तरक्की होगी।
FAQs For Holi Kab Hai 2024
2024 में होली कब है?
2024 में होली 25 मार्च को मनाई जाएगी।
2024 में होलिका दहन कब है?
2024 में होली दहन 24 मार्च 2024 को किया जाएगा।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में हमने आपको 2024 में होली कब है, होलिका दहन कब है, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है आदि के बारे में जानकारी दी है। हमे उम्मीद है आपको यह लेख अच्छा लगा होगा। अगर आपको यह लेख होली इन हिंदी अच्छा लगा है तो इसे अपनों के साथ भी शेयर करे।
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