चंद्रगुप्त मौर्य के दादाजी का नाम – चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 321 से 297 ईसा पूर्व तक मगध के विशाल साम्राज्य पर शासन किया था। कथित तौर पर अपने गुरु और बाद में चंद्रगुप्त के मंत्री, चाणक्य या कौटिल्यकी सहायता से, उन्होंने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र में मौर्य साम्राज्य की कार्यप्रणाली, समाज, सेना और अर्थव्यवस्था का विवरण मिलता है। तो आइये अब जानते है –
चंद्रगुप्त मौर्य के दादाजी का नाम क्या था (Chandragupta Maurya’s Grandfather Name In Hindi)
चन्द्रगुप्त मौर्य के दादा का नाम “चन्द्रसेन मौर्य” था। चन्द्रसेन मौर्य एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्ति थे जिनका महत्व उनके पोते चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य के निर्माण में था।
चंद्रगुप्त मौर्य के दादाजी का नाम – चंद्रसेन मौर्य
चंद्रगुप्त मौर्य के माता का नाम – मुरा
चंद्रगुप्त मौर्य के पिता का नाम – नंदा
चंद्रगुप्त मौर्य के पुत्र का नाम – बिंदुसार और जस्टिन
चंद्रगुप्त मौर्य के पत्नी का नाम – दुर्धरा और कार्नेलिया हेलेना
चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु का नाम – आचार्य चाणक्य
चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में
चन्द्रगुप्त मौर्य का पूरा नाम मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य था।, जिन्हे सैंड्रोकोटस और एंडोकोटस नाम से भी जाना जाता है। वह मगध पर अपना शासन स्थापित करने वाले मौर्य वंश के पहले राजा थे। चन्द्रगुप्त ने अपना साम्राज्य कश्मीर से दक्कन तक और असम से अफगानिस्तान तक फैलाया।
चन्द्रगुप्त मौर्य न केवल भारत बल्कि आसपास के देशों पर भी शासन करते थे। उनकी वीरता की कहानी को याद कर लोग आज भी गर्व महसूस करते है। उनका नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है।
चंद्रगुप्त मौर्य के जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में बात करें तो इस पर अलग-अलग इतिहासकारों ने अलग-अलग राय दी है। बौद्ध परंपरा के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य क्षत्रिय समुदाय से थे। अगर हम प्रसिद्ध संस्कृत नाटक मुद्राराक्षस की बात करें तो उन्हें “नन्दनव्य” यानि नन्द के वंशज कहा गया है।
इसके अलावा इस मशहूर किताब में उन्हें ‘कुल-हीन’ और ‘वृषाला’ भी कहा गया है। इस तरह अगर हम भारतेंदु हरिश्चंद्र के अनुवाद की बात करें तो चंद्रगुप्त के पिता को नंद के राजा महानंद और उनकी माता का नाम मुरा बताया गया है।
सामान्य तथ्यों के अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म 340 ईसा पूर्व बिहार के पाटलिपुत्र में हुआ था। उनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था और उनके पिता का नाम नंदा था जो नंदा सेना में एक अधिकारी थे। चन्द्रगुप्त के जन्म से पहले ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी थी।
चन्द्रगुप्त के जन्म के बाद उनकी माँ ने उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी एक चरवाहे को दे दी, लेकिन जैसे ही चंद्र थोड़ा बड़ा हुआ, चरवाहे ने उसे एक शिकारी को बेच दिया। वहां चंद्र मवेशी पालने के काम में लग गये, इसी प्रकार चन्द्रगुप्त मौर्य का बचपन बीता और वे बड़े हुए। इसी दौरान चंद्र की मुलाकात आचार्य चाणक्य से हुई जिन्होंने उनके बाद के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ऐतिहासिक तथ्यों में इस बात का भी प्रमाण है कि चंद्रगुप्त मौर्य के पिता नंदा का एक सौतेला भाई नवनदास था, जिनसे उनकी बिल्कुल भी नहीं बनती थी। नवनदास ने पूरी शक्ति से अपने भाई को मारने की ठान ली। ऐसा माना जाता है कि नवनादास ने चंद्र के 99 भाइयों की हत्या कर दी थी। किसी तरह चंद्र की माँ ने उन्हें बचा लिया और वे मगध साम्राज्य में अपना जीवन व्यतीत करने लगे।
जब चन्द्र की मुलाकात आचार्य चाणक्य से हुई तो उन्होंने चन्द्र के गुणों को पहचान लिया और उन्हें अपने साथ तक्षशिला ले गये। चाणक्य ने उन्हें सभी प्रकार की शिक्षा दी और वे सभी कौशल सिखाए जो एक अच्छे शासक में होने चाहिए।