चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब और कहां हुई थी – चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य वंश और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक थे। चंद्रगुप्त मौर्य, जो क्षत्रिय वंश से थे, भारत के महानतम सम्राटों में से एक थे। चंद्रगुप्त मौर्य को उनके प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य / कौटिल्य (विष्णुगुप्त) का समर्थन प्राप्त था, उनके सिद्धांतों का पालन करते हुए, चंद्रगुप्त मौर्य पूरे भारत को एक साम्राज्य के तहत लेकर आये।
चन्द्रगुप्त मौर्य ने लगभग 24 वर्षों तक शासन किया। मौर्य साम्राज्य से पहले भारत पर नंद वंश का शासन था, लेकिन चाणक्य के मार्गदर्शन में चंद्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल सेना का निर्माण किया और मौर्य साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार लगभग पूरे भारत तक कर दिया। तो आइये जानते है चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब और कहां हुई थी –
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कब और कहां हुई थी
चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 297 ईसा पूर्व में श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में 48 वर्ष की उम्र में हुई थी।
24 वर्षों तक सफलतापूर्वक शासन करने के बाद उन्होंने 297 ईसा पूर्व में कर्नाटक के श्रवणबेलगोला नामक स्थान पर एक जैन भिक्षु की तरह उपवास करते हुए अपने प्राण त्याग दिये। मृत्यु के समय चन्द्रगुप्त मौर्य की आयु 48 वर्ष थी।
इस प्रकार भारतीय इतिहास में इतने महान राजा का चले जाना न केवल मौर्य साम्राज्य के लिए क्षति थी बल्कि संपूर्ण भारत के लिए भी बहुत बड़ी क्षति थी। सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद उनका पुत्र बिन्दुसार मौर्य साम्राज्य का दूसरा शासक बना। चन्द्रगुप्त मौर्य को इतिहास में सदैव याद किया जायेगा।
चंद्रगुप्त मौर्य का इतिहास
चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य संभालने से पहले, उत्तर-पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर सिकंदर ने आक्रमण किया था, लेकिन 324 ईसा पूर्व में सिकंदर की सेना में विद्रोह छिड़ गया। इस कारण उसने भारत पर आगे आक्रमण करने का सपना छोड़ दिया और पुनः लौट आया।
चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य को चंद्रगुप्त मौर्य का गुरु भी कहा जा सकता है, क्योंकि उनके मार्गदर्शन में उन्होंने पूरे साम्राज्य का विस्तार किया और उनकी नीतियों को अपनाया।
सिकंदर के आक्रमण से पहले और चंद्रगुप्त मौर्य के सम्राट बनने से पहले, नंद वंश के धनानंद का लगभग पूरे उत्तर भारत पर नियंत्रण था।
कहा जाता है कि एक बार नंद वंश के राजा धनानंद और आचार्य चाणक्य के बीच किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया था। इसके कारण, आचार्य चाणक्य ने किसी भी तरह से नंद वंश को नष्ट करने और भारत में मौर्य साम्राज्य की स्थापना करने का निर्णय लिया।
आचार्य चाणक्य मगध पर शासन करने वाले नंद वंश के शासक के घर में एक उच्च पद पर थे, लेकिन राजा ने किसी बात पर उनका अपमान किया और इस अपमान का बदला लेने के लिए आचार्य चाणक्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह नंद वंश को समाप्त कर देंगे। तक्षशिला के रहने वाले आचार्य चाणक्य बचपन से ही चंद्रगुप्त मौर्य के संपर्क में थे और दोनों एक दूसरे से मिलते रहते थे।
चंद्रगुप्त मौर्य एक साधारण जीवन व्यतीत कर रहे थे, लेकिन जैसे ही आचार्य चाणक्य उनके संपर्क में आए, उन्होंने अपनी नीतियों और कार्यप्रणाली के आधार पर चंद्रगुप्त मौर्य को एक सामान्य व्यक्ति से मौर्य साम्राज्य का राजा बना दिया और अपने वादे (प्रतिज्ञा) के अनुसार पूरी तरह से नंद वंश को नष्ट कर दिया।
आचार्य चाणक्य या कौटिल्य, जिन्हें विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है, अस्त्र-शस्त्र एवं शस्त्रागार में पूर्ण रूप से निपुण थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने कौटिल्य के बताये मार्ग पर चलकर सबसे पहले मगध के राजा नंद को हराकर मगध पर कब्ज़ा किया। मगध पर कब्ज़ा करने के बाद यहाँ रहने वाले विदेशी यूनानी लोगों को भारत से बाहर निकाल दिया गया।