आचार्य चाणक्य ने श्लोक के जरिए बताया है कि व्यक्ति की समस्याओं की मूल जड़ है उसका मन।
अगर व्यक्ति का मन अर्थात चित्त काबू में नहीं है, तो वह कभी सुखी और संतुष्ट नहीं हो पाता।
मन की चंचलता इंसान को दुनिया के समस्त सुख और सुविधाएं होने पर परेशान रहता है। ऐसे लोगों के कार्य बनते-बनते बिगड़ जाते है।
चाणक्य कहते हैं जिन लोगों में मन को कंट्रोल करने की क्षमता नहीं है वह न तो भरे पूरे परिवार के बीच सुखी होते है, ना ही अकेले में।
चाणक्य के अनुसार चित्त पर नियंत्रण खोने वाले को लोगों के बीच उनका साथ दुखी करता है, क्योंकि वह लोगों की सफलता को देखकर ईर्ष्या भाव रखता है, जिस वजह से वह कभी खुश नहीं रह पाता।
ऐसे लोगों का काम में भी मन नहीं लगता और वह असफलता के नजदीक पहुंच जाते हैं।
वहीं अकेलापन उसे अंदर ही अंदर बर्बाद कर देता है। अकेले में रहने पर उस व्यक्ति को में ये भावना जागृत होने लगीत है कि पूरी दुनिया उसके खिलाफ है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जो व्यक्ति छल-कपट और बुरे कार्यों में लिप्त रहता है उसे कभी मां लक्ष्मी का आशीर्वाद नहीं मिलता और वह लक्ष्य से भटक जाता है।
अपने लक्ष्य को पाने के लिए व्यक्ति को अच्छी संगत, अनुशासन, मन पर नियंत्रण, जो प्राप्त है वही पर्याप्त है की भावना अपनाना चाहिए।
इन चीजों की बदौलत धन तो मिलता ही है समाज में मान प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।