कहते हैं ना व्यक्ति का एक अवगुण उसके सौ अच्छे गुणों पर भारी पड़ता है।
चाणक्य ने इस कथन में बताया है कि जब मनुष्य एक झूठ बोलता है तो उसे छुपाने के लिए सौ झूठों का सहारा लेना पड़ता है, इसी तरह उसे झूठ बोलने की लत लग जाती है।
झूठ बोलने की आदत हावी हो जाए तो वह व्यक्ति, घर, मित्र यहां तक की अपने कार्यस्थल पर भी झूठ बोलने लगता है।
फिर जिस दिन सच्चाई सामने आती है तो उसके साथ परिवार को भी लज्जित होना पड़ता है।
झूठ और बेईमानी का रास्त सरल है लेकिन इसकी उम्र बहुत छोटी होती है। झूठ बोलकर पलभर की खुशियां पा सकते है लेकिन जब पर्दाफाश होता है तो बाद में पछताना ही पड़ता है।
ऐसे व्यक्ति की असलियत सामने आती है तो हर कोई दूरी बना लेता है। ऐसे लोगों की छवि पर बुरा असर पड़ता है। लाख सफाई देने पर भी लोग इनकी बातों पर भरोसा नहीं करते। झूठ बोलने वाले व्यक्ति की तरक्की रुक जाती है।
सत्य उस दौलत के समान होता है, जिसे पहले खर्च करो और बाद में उसका जीवन भर आनंद प्राप्त करो।
जबकि झूठ वह कर्ज है, जिससे क्षणिक सुख तो मिलता है, लेकिन उसका कर्ज जिंदगी भर चुकाना पड़ता है।
चाणक्य कहते हैं कि झूठ बोलने की आदत मन में डर या लालच का भाव पैदा होने पर लगती है। व्यक्ति अपनी सहूलियत के हिसाब से सच को तोड़ मरोड़ लेते हैं और ऐसे में सच कहीं नीचे दब जाता है।
अगर हंसी-खुशी भरी जिंदगी जीना हैं, तो सच की राह पर चलना होगा।