चाणक्य नीति के अनुसार अच्छा दिखने वाला भोजन जिस तरह पेट में जाते ही बदहजमी का कारण बन जाता है और विष का काम करता है।
उसी तरह अभ्यास न करने से शास्त्रों का ज्ञान भी व्यर्थ हो जाता है और विष के समान घातक बन जाता है।
आचार्य चाणक्य ने बताया है कि व्यक्ति को कभी भी अभ्यास नहीं त्यागना चाहिए।
ऐसा इसलिए क्योंकि किसी भी चीज का अभ्यास एक व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है। जो व्यक्ति निरंतर अभ्यास करता है। वह किसी भी परेशानी को आसानी से सुलझा सकता है।
वहीं जो व्यक्ति अभ्यास को त्याग देता उसे जीवन भर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
शिक्षा के क्षेत्र अभ्यास पर ही विद्यार्थी का भविष्य टिका हुआ होता है। इसलिए जो छात्र परिश्रम और निरंतर अभ्यास करता है उसे हमेशा सफलता मिलती है।
वहीं जो कार्य को टालता रहता है उसके लिए किसी भी प्रकार की शिक्षा व्यर्थ हो जाती है।
इसलिए आधा अधूरा कार्य और अभ्यास एक व्यक्ति और खासकर विद्यार्थी के लिए विष के समान। व्यक्ति को ऐसे व्यवहार से बचना चाहिए और अपना काम ईमानदारी से करना चाहिए।