आचार्य चाणक्य का कहना है कि बात-बात पर रोने, चीखने और चिल्लाने वाली स्त्रियां घरों में ज़रूर होनी चाहिए। क्योंकि ऐसे स्त्रियां बहुत कम होती हैं जो अपने मन की बात बोल पाएं।
अगर कोई स्त्री अपना गुस्सा निकाल रही है तो इसका मतलब है कि वो सच्चे मन की है। जो अपनी हर बात को रोने और चीखने-चिल्लाने के साथ निकाल देती हैं।
चाणक्य के अनुसार, ऐसी स्त्रियों से पुरुष भी डरते हैं और आलसी से आलसी व्यक्ति भी डर के मारे काम करता है। जो घर परिवार की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए बहुत ज़रूरी होता है।
अधिक संवेदनशील स्त्रियां भले चिल्लाए रोयें, लेकिन जिसका भी विवाह ऐसी स्त्री के साथ होता है, उसके किस्मत के ताले खुल जाते हैं।
ऐसी स्त्रियां कभी परिवार को तोड़ना नहीं चाहती हैं।
जो स्त्री अपनी हर बात मन से बाहर निकाल देती हैं। मन साफ होने के चलते ऐसी स्त्रियां किसी के प्रति द्वेष भावना नहीं रखती हैं।
ऐसी स्त्रियां कभी किसी का दिल नहीं तोड़ती।