जीवन की चार परिस्थिति मनुष्य को अंदर ही अंदर कर देती हैं खत्‍म

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि व्‍यक्ति के लिए सबसे कष्‍टकारी पत्नी वियोग होता है। इस व्यक्ति में व्‍यक्ति दुनियादारी की हर एक चीज को भूल जाता है।

क्‍योंकि पत्‍नी अपने पति के साथ-साथ पूरे घर-परिवार का ध्यान रखती है। जब पत्‍नी साथ छोड़ देती है तो पति को हर मोड़ पर पत्‍नी याद आती है। इस वियोग में पति अंदर ही अंदर जलता रहता है।

आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि जब किसी व्‍यक्ति का उसके घर पर ही इज्‍जत नहीं होती हैं तो वह व्‍यक्ति अंदर ही अंदर ग्लानि भरा जीवन जीना पड़ता है।

अपनों से हुई बे-इज्‍जत के कारण व्‍यक्ति धीरे-धीरे अंदर ही जलता रहता है और कुछ समय बाद मरे हुए व्यक्ति के समान हो जाता है।

आचार्य चाणक्य के अनुसार अगर व्‍यक्ति पर कर्ज है तो इसका बोझ भी उसे अंदर ही अंदर मारता रहता है।

व्‍यक्ति इस कर्ज को खत्‍म करने और अपने परिवार को खुशहाल रखने के लिए जी-तोड़ मेहनत करता है, लेकिन जब यह कर्ज नहीं उतरता तो व्‍यक्ति परेशान हा जाता है और उसकी रात की नींद उड़ जाती है।

आचार्य चाणक्‍य कहते हैं कि किसी भी व्‍यक्ति के जीवन में गरीबी और दरिद्रता से बुरा कुछ हो नहीं सकता है। यह स्थिति व्‍यक्ति को अंदर ही अंदर जलाकर रख कर देता है।

आचार्य कहते हैं ऐसे व्‍यक्ति के दिमाग में हर समय यही बात चलती रहती है। इससे छुटकारा पाने के प्रयास में व्‍यक्ति कई बार गलत मार्ग पर भी चला जाता है।